prakriti ki sundarta pe kavita
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ati beutifullllllll
veedushee:
its not the poem
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रत्न प्रसविनी हैं वसुधा,
यह हमको सब कुछ देती है |
माँ जैसी ममता को देकर,
अपने बच्चों को सेती है ||
भौतिकवादी जीवन में,
हमनें जगती को भुला दिया |
कर रहें प्रकृति से छेड़छाड़,
हम ने सबको है रुला दिया ||
हो गयी प्रदूषित वायु आज,
हम स्वच्छ हवा को तरस रहे |
वृक्षों के कटने के कारण,
अब बादल भी न बरस रहे ||
वृक्ष काट – काटकर हम ने,
माँ धरती को विरान कर डाला |
बनते अपने में होशियार,
अपने ही घर में डाका डाला ||
बहुत हो गया बन्द करो अब,
धरती पर अत्याचारों को |
संस्कृति का सम्मान न करते,
भूले शिष्टाचार को |
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