Prakriti ki sundarta vishikesh mei 110 se 120 shabdo Mein anuched likhiye
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प्रकृति के विषय को समझने के लिये इस पर आसान भाषण और निबंध दिये जा रहे है। इससे हमारे केजी से लेकर 10 तक के बच्चों और विद्याथर्यीं की शिक्षा में नई रचनात्मकता का प्रवेश होगा। प्रकृति हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसके बारे में हमें अपने बच्चों को बताना चाहिये। तो, चलिये निबंध लेखन और भाषण व्याख्यान के द्वारा अपने बच्चों को कुदरत के करीब लाते है।
प्रकृति पर निबंध (नेचर एस्से)
प्रकृति पर निबंध 1 (100) शब्द
हम सबसे सुंदर ग्रह पर निवास करते है, जी हाँ धरती, जो हरियाली से युक्त बेहद सुंदर और आकर्षक है। कुदरत हमारी सबसे अच्छी साथी होती है जो हमें धरती पर जीवन जीने के लिये सभी जरुरी संसाधन उपलब्ध कराती है। प्रकृति हमें पीने को पानी, सांस लेने को शुद्ध हवा, पेट के लिये भोजन, रहने के लिये जमीन, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे आदि हमारी बेहतरी के लिये उपलब्ध कराती है। हमें बिना इसके पारिस्थितिक संतुलन को बिगाड़े इसका आनन्द लेना चाहिये। हमें अपने प्राकृतिक परिवेश का ध्यान रखना चाहिये, स्थिर बनाना चाहिये, साफ रखना चाहिये और विनाश से बचाना चाहिये जिससे हम अपनी प्रकृति का हमेशा आनन्द ले सकें। ये हम इंसानों को ईश्वर के द्वारा दिया गया सबसे खूबसूरत उपहार है जिसे नुकसान पहुँचाने के बजाय उसका आनन्द लेना चाहिये।

प्रकृति पर निबंध 2 (150) शब्द
हमारे सबसे आस-पास सुंदर और आकर्षक प्रकृति है जो हमें खुश रखती है और स्वस्थ जीवन जीने के लिये एक प्राकृतिक पर्यावरण उपलब्झ कराती है। हमारी प्रकृति हमें कई प्रकार के सुंदर फूल, आकर्षक पक्षी, जानवर, हरे वनस्पति, नीला आकाश, भूमि, समुद्र, जंगल, पहाड़, पठार आदि प्रदान करती है। हमारे स्वस्थ जीवन के लिये ईश्वर ने हमें एक बेहद सुंदर प्रकृति बना कर दी है। जो भी चीजें हम अपने जीवन के लिये इस्तेमाल करते है वो प्रकृति की ही संपत्ति है जिसे हमें सहेज कर रखना चाहिये।
हमें इसकी वास्तविकता को खत्म नहीं करना चाहिये और साथ ही इसके पारिस्थितिकी तंत्र को असंतुलित नहीं करना चाहिये। हमारी कुदरत हमें जीने और खुश के लिये बहुत सुंदर वातावरण प्रदान करती है इसलिये ये हमारा कर्तव्य है कि हम इसको सुरक्षित और स्वस्थ रखें। आज के आधुनिक समय में, इंसानों की बहुत सी खुदगर्जी और गलत कामों ने प्रकृति को बुरी तरह प्रभावित किया है लेकिन हम सभी को इसकी सुंदरता को बनाये रखना है।
प्रकृति पर निबंध 3 (200) शब्द
हमारे आस-पास सब कुछ प्रकृति है जो बहुत खूबसूरत पर्यावरण से घिरी हुई है। हम हर पल इसे देख सकते है और इसका लुफ्त उठा सकते है। हम हर जगह इसमें प्राकृतिक बदलावों को देखते, सुनते, और महसूस करते है। हमें इसका पूरा फायदा उठाते हुये शुद्ध हवा के लिये रोज सुबह की सैर करने के बहाने घर से बाहर जाना चाहिये तथा प्रकृति के सुबह की सुंदरता का आनन्द उठाना चाहिये। हालाँकि सूर्योदय के साथ ये दिन में नारंगी और सूर्यास्त होने के दौरान ये पीले रंग सा हो जाता है। थोड़ा और समय बीतने के साथ ही काली रात का रुप ले लेता है।
एक छोटे से शब्द ”प्रकृति“ में कितना कुछ समाता है कोई सोच भी नहीं सकता। प्रकृति के अन्दर वायु, पानी, मिट्टी, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, नदियाँ, सरोवर, झरने, समुद्र, जंगल, पहाड़, खनिज आदि और न जाने कितने प्राकृतिक संसाधन आते हैं। इन सभी से हमें साँस लेने के लिए शुद्ध हवा, पीने के लिए पानी, भोजन आदि जो जीवन के लिए नितान्त आवश्यक हैं उपलब्ध होते हैं। प्रकृति से हमें जीवन जीने की उमंग मिलती है। बसंत देख कर दिल खुश होता है, सावन में रिमझिम बरसात मन को मोह लेती है, इंद्रधनुष हमारे अंतरंग में रंगीन सपने सजाता है। प्रकृति हमें शारीरिक सुख-सुविधा के साथ-साथ मानसिक सुख भी देती है पर हमारे पास प्रकृति को देने के लिए कोई वस्तु नहीं है। यदि कुछ है तो वह सिर्फ इतना कि हम इसका संरक्षण कर सकें।
सूर्य की पहली किरण से लेकर चाँद की चाँदनी तक, खुले मैदानों, बुग्यालों से लेकर जंगल और पहाड़ों तक, नदी के कल-कल मधुर संगीत से लेकर समुद्र में उठती लहरों, पेड़ पर बैठी चिड़िया की चहचहाहट जो भी हमारे आसपास उपलब्ध प्राकृतिक संसाधन हैं हमें सबका अनुभव करना चाहिये और आनन्द उठाना चाहिये। क्योंकि जब तक हमें इसके महत्व का बोध नहीं होगा और जब तक हम इसके सौंदर्य की सराहना करना नहीं सीखेंगे तब तक हमारे लिए यह महत्व का विषय नहीं हो सकती। किसी चित्रकार, कवि, लेखक और कलाकारों के भाव तभी जागृत होते हैं जब वह प्रकृति की गोद में शांत वातातरण में कल्पना करता है, तभी वह उसे कागज पर उतारता है। इसके बिना तो जीवन में रंग भी नहीं है। जब इंसान मशीनी जीवन जीते-जीते ऊब जाता है तो प्रकृति की गोद में जाकर सुकून की साँस लेना चाहता है। आजकल के युग में मनुष्य प्राकृतिक वस्तुओं की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहा है और वस्तुएं खरीदते समय भी वह प्राकृतिक वस्तुओं या प्राकृतिक तव्वों से बनी वस्तुओं को ही महत्व देता है। जब हम प्राकृतिक उत्पादों को इतना महत्व देते हैं तो प्रकृति को क्यों नहीं ? आखिर ये सब वस्तुएं तभी तक उपलब्ध हैं जब तक यह प्रकृति है।
हम प्रकृति से चाहते तो बहुत कुछ हैं लेकिन अपनी कीमत पर। जिस रफ्तार से हम पेड़ काट कर वनों को कम करके उत्पादों का निर्माण कर रहे हैं उतनी रफ्तार से पौधों का रोपण नहीं हो रहा है। हमें पीने के लिए स्वच्छ जल चाहिये लेकिन कल-कारखानों का सारा जहरीला पानी हम नदियों में ही बहाते हैं। खाने के लिए हमें रसायन मुक्त फल-फूल और भोजन चाहिये लेकिन रसायनों का प्रयोग बन्द नहीं करते। यदि ऐसा ही रहा तो दिखावे मात्र प्रयास करने से प्रकृति पर कुछ प्रभाव नहीं पड़ेगा। जैसा व्यवहार हम प्रकृति के साथ करेंगे वैसा ही वह हमारे साथ करेगी। बेमौसमी बरसात, बाढ़, सूखा, मौसम परिवर्तन, भू-स्खलन, सूखते जंगल, बंजर भूमि इन सब परिणामों के लिए हमें तैयार रहना चाहये। यदि ऐसा ही रहा तो दिन प्रति दिन यह प्रकृति धीरे-धीरे लुप्त होती जायेगी इसलिए हमें प्रत्यन करना चाहिये कि हम प्रकृति का संतुलन बिगाड़े बगैर इसका लाभ उठा सकें। अन्यथा इसे स्वच्छ और स्वस्थ रखे बिना स्वच्छ और स्वस्थ जीवन की आशा करना बेकार है।