prakruthi soundary par ek choti si kavitha
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मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित
चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में,
:स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।
पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से,
:मानों झूम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥
पंचवटी की छाया में है, सुन्दर पर्ण-कुटीर बना,
:जिसके सम्मुख स्वच्छ शिला पर, धीर-वीर निर्भीकमना,
जाग रहा यह कौन धनुर्धर, जब कि भुवन भर सोता है?
:भोगी कुसुमायुध योगी-सा, बना दृष्टिगत होता है॥
मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित
चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में,
:स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।
पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से,
:मानों झूम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥
पंचवटी की छाया में है, सुन्दर पर्ण-कुटीर बना,
:जिसके सम्मुख स्वच्छ शिला पर, धीर-वीर निर्भीकमना,
जाग रहा यह कौन धनुर्धर, जब कि भुवन भर सोता है?
:भोगी कुसुमायुध योगी-सा, बना दृष्टिगत होता है॥
मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित
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