Prakruti hamare liye atyathik mahatavapurna kyo he
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Explanation:
मनुष्य और प्रकृति का साथ सहअस्तित्व का है। जल जंगल, खनिज, वायु आदि हमारे लिए प्राकृतिक उपहार है। मनुष्य का प्रकृति से रिश्ता जब तक अपनी जरूरत को पूरा करने भर का था तब तक सब ठीक चलता रहा। लेकिन विकास की चरम भूख और उपभोग की असीमित पिपासा ने प्रकृति को तबाह कर दिया है। नदियों पर बड़े-बड़े बाँध बनाकर पानी को रोका गया। पहाड़ों से पत्थर निकालने के लिए डाइनामाइट से विस्फोट कराया गया। जंगलों को काटकर कंक्रीट के जंगल उगाए गए।
उद्योगों से निकलने वाले धुआँ से वायुमण्डल विषाक्त हो गया। विश्व भर में उत्सर्जित होने वाले गैस,धुआँ और खनन से वैश्विक तापमान बढ़ता गया। शुरू में तो विकसित देशों ने समझा की इसका दुष्परिणाम रोकने के लिए हम कोई-न-कोई काट खोज लेंगे। लेकिन आज की तारीख तक वे असफल ही रहे हैं। लेकिन सबसे आश्चर्य एवं दुख की बात यह है कि भारत में अभी भी पर्यावरण, वैश्विक तापमान और मानवाधिकार जैसे मुद्दे अकादमिक जगत तक ही सीमित है।
अभी तक आम आदमी इसके प्रति जागरूक करने की जितनी पहल की जानी चाहिए थी वह नहीं हो रहा है। देश का जनमानस इसके दुष्प्रभाव को समझने से वंचित है।
आज मानव का प्रकृति पर विजय की कामना अधूरी ही साबित हो रही है। ज्ञान-विज्ञान की तमाम प्रगति और अविष्कारों ने प्रकृति और ब्रहमाण्ड का केवल कुछ प्रतिशत जानकारी ही हासिल कर सकता है। कुछ फीसदी जानकारी प्राप्त करके ही वह प्रकृति पर नियन्त्रण करने का सपना देखने लगा। यह सपना उसके लिए खतरनाक साबित हो रहा है।
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Answer:
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Explanation:
एक छोटे से शब्द ”प्रकृति“ में कितना कुछ समाता है कोई सोच भी नहीं सकता। प्रकृति के अन्दर वायु, पानी, मिट्टी, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, नदियाँ, सरोवर, झरने, समुद्र, जंगल, पहाड़, खनिज आदि और न जाने कितने प्राकृतिक संसाधन आते हैं। इन सभी से हमें साँस लेने के लिए शुद्ध हवा, पीने के लिए पानी, भोजन आदि जो जीवन के लिए नितान्त आवश्यक हैं उपलब्ध होते हैं। प्रकृति से हमें जीवन जीने की उमंग मिलती है। बसंत देख कर दिल खुश होता है, सावन में रिमझिम बरसात मन को मोह लेती है, इंद्रधनुष हमारे अंतरंग में रंगीन सपने सजाता है। प्रकृति हमें शारीरिक सुख-सुविधा के साथ-साथ मानसिक सुख भी देती है पर हमारे पास प्रकृति को देने के लिए कोई वस्तु नहीं है। यदि कुछ है तो वह सिर्फ इतना कि हम इसका संरक्षण कर सकें।