prakruti ke bare mein ek kabita? sirshak dekar likhna??
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हरे पेड़ पर चली कुल्हाड़ी धूप रही ना याद।
मूल्य समय का जाना हमनेखो देने के बाद।।
खूब फसल खेतों से ले ली डाल डाल कर खाद।
पैसों के लालच में कर दी उर्वरता बर्बाद।।
दूर दूर तक बसी बस्तियाँ नगर हुए आबाद।
बन्द हुआ अब तो जंगल से मानव का संवाद।।
ताल तलैया सब सूखे हैं हुई नदी में गाद।
पानी के कारण होते हैं हर दिन नए विवाद।।
पशु पक्षी बेघर फिरते हैं कौन सुने फरियाद।
कुदरत के दोहन ने सबके मन में भरा विषाद।।
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y r u not message me please please please please please
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