Hindi, asked by sweetie5162, 5 months ago

Prakruti. Ki. Sundrta per. Aap. Ka. Kya. Taatparya. Hae

Answers

Answered by singhdisha687
2

mark me as brainliest answer and thanks me for the reply

प्रकृति का सौंदर्य : उसकी एक रूपता है।

प्रकृति कभी भी भेदभाव नहीं करती है। यदि प्रकृति भेदभाव करती तो विज्ञान का अस्तित्व ही नहीं होता। हमारे आपसी निष्कर्ष कभी भी मेल नहीं खाते। प्रयोग और परीक्षण विधि को उपयोग में लाना असंभव होता। उसकी सत्यता हमेशा संदेह के घेरे में होती। चिकित्सा पद्धति में रोगों के कारण को पहचानना असंभव होता। तकनीक विकसित करना मनुष्य के वश में नहीं होता। और सबसे बड़ी परमाणु से लेकर खगोलीय पिंडों तक का अस्तित्व ही नहीं होता।

ये जो हम अपने चारों और देखते हैं पेड़-पौधे, जीव-जंतु, तारे, ग्रह, उपग्रह इत्यादि। ये प्रकृति नहीं है !! बल्कि इन सभी के बीच के संतुलन और सामंजस्य को प्रकृति कहते हैं। इस संतुलन और सामंजस्य में सौन्दर्य भी है, सामर्थ्य भी है। यहाँ सौन्दर्य का आशय "जिसे हम खोज के दौरान ज्ञात करते हैं और उसके द्वारा भविष्यवाणियां कर सकते हैं" से होता है। जबकि सामर्थ्य का आशय "उस क्षमता या परिस्थिति से है, जिसके द्वारा प्रकृति द्वारा प्रदत्त अर्थात प्राकृतिक चीजों की रचना होती हैं।" हमारा जन्म भी संतुलन का ही परिणाम है कि हम दिखने में वैसे ही हैं जैसे : हमारे अभिभावक

संयोग किसी भी घटना के लिए बहुत महत्व रखता है। प्रकृति भेदभाव करती है कहकर जो उदाहरण दिया जाता है। वह ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के समय का है कि ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के समय पदार्थ और प्रतिपदार्थ समान मात्रा में थे। प्रकृति ने उसे नष्ट करके भेदभाव किया है ! चूँकि प्रतिपदार्थ अभी तक नहीं खोजा गया है। इसलिए प्रकृति के ऊपर भेदभाव का आरोप लगाना गलत है। और दूसरी ओर संभव है कि प्रति-ब्रह्माण्ड भी अस्तित्व रखता हो ! जब इन दोनों का संयोग होगा तब सम्पूर्ण पदार्थ नष्ट होकर ऊर्जा में परिवर्तित हो जाएगा।

Answered by leoyashasvisingh
2

Answer:

xousttagzljl

Explanation:

Mark me as BRAINLIEST ANSWER

Similar questions