pratahkal in Brahman
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प्रात: काल के भ्रमण का महत्त्व केवल इसलिए नहीं होता है की वातावरण मनोरम होता है । मन्द-मन्द शीतल समीर हृदय में अत्यन्त आहाद पैदा करती है । चन्द्रमा अपने स्वच्छ प्रकाश के साथ तारागणो सहित ओझल होने जा रहा होता है । पूर्व दिशा की लालिमा बाल अरुण के उदय होने का संकेत दे रही है ।
पक्षियों का कलरव चित्ताकर्षक होता है । सुबह की वायु एक प्रकार की अमृत है । पूर्व दिशा में लाल पक्षी की तरह या काँसे के थाल सदृश बाल रवि, उदय की ओर बढ़ रहा है । कमल, सूर्य-कमल खिल रहे हैं । उपवनों की शोभा द्विगणित हो रही है । उस समय का दृश्य किसको मोहित नहीं करता है । कवि हृदय खिल पड़ता है । हिलोरे लेने लगता है । फूट पड़ती है कमनीय कल्पना कविता बनकर ।
प्रातःकालीन भ्रमण व्यायाम का अंग-प्रात-काल का भ्रमण भी एक प्रकार का व्यायाम है । शरीर को स्वस्थ रखने के लिये व्यायाम आवश्यक है । भ्रमण करने से व्यायाम के सारे लाभ प्राप्त होते हैं । प्रात: उठकर मनुष्य जब घूमने के लिए निकलता है उस समय उसके शरीर के प्रत्येक अवयव क्रियाशील हो जाते हैं ।
व्यायाम के अन्य साधनों से शरीर का कोई विशिष्ट अंग ही प्रभावित होता है परन्तु भ्रमण से शरीर के प्रत्येक अगों में गति पैदा होती है । प्रातःकालीन भ्रमण में हाथ- की कसरत होती है । फेफडें को शुद्ध वायु प्राप्त होती है । कई लोग भ्रमण करते हुए दौड़ भी लगाते हैं । वह भी व्यायाम का ही एक अंग है है ।