India Languages, asked by Arjunkumar121, 1 year ago

pratyay hindi me explain kro

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Answered by JAISAL
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It is a suffix which is added at the end of a word to change the meaning of it

Arjunkumar121: hindi me explain kro
JAISAL: Pratay shabd ke piche lagta hai aur iske lagna se shabd ka arth Badal jata hai
TONYSTARKIRONMAN: mere vala samja
Arjunkumar121: iske types bhi
JAISAL: Agar tu cbse mein hai to zaroorat nahi hai types ki
Arjunkumar121: me RBSE me hu
Answered by aashish2005
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प्रति’ और ‘अय’ दो शब्दों के मेल से ‘प्रत्यय’ शब्द का निर्माण हुआ है।
‘प्रति’ का अर्थ ‘साथ में, पर बाद में” होता है । ‘अय’ का अर्थ होता है, ‘चलनेवाला’ ।
इस प्रकार प्रत्यय का अर्थ हुआ-शब्दों के साथ, पर बाद में चलनेवाला या लगनेवाला शब्दांश । अत:, जो शब्दांश के अंत में जोड़े जाते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं।
जैसे-‘ बड़ा’ शब्द में ‘आई’ प्रत्यय जोड़ कर ‘बड़ाई’ शब्द बनता है।

Pratyay ke Bhed (प्रत्यय के भेद):
प्रत्यय
1. कृत प्रत्यय 2. तद्धित प्रत्यय
i. विकारी कृत्-प्रत्यय ii. अविकारी कृत्-प्रत्यय (1) कर्तृवाचक,
(a) क्रियार्थक संज्ञा, (2) भाववाचक,
(b) कतृवाचक संज्ञा (3) ऊनवाचक,
(c) वर्तमानकालिक कृदंत (4) संबंधवाचक,
(d) भूतकालिक कृदंत (5) अपत्यवाचक,
(6) गुणवाचक,
(7) स्थानवाचक तथा
(8) अव्ययवाचक ।


प्रत्यय के भेद : प्रत्यय के दो मुख्य भेद हैं-(1) कृत् और (2) तद्धित ।
1. कृत्-प्रत्यय (Krit Pratyay)-
क्रिया अथवा धातु के बाद जो प्रत्यय लगाये जाते हैं, उन्हें कृत्-प्रत्यय कहते हैं । कृत्-प्रत्यय के मेल से बने शब्दों को कृदंत कहते हैं.

2. तद्धित प्रत्यय (Taddhit Pratyay)-
संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण के अंत में लगनेवाले प्रत्यय को ‘तद्धित’ कहा जाता है । तद्धित प्रत्यय के मेल से बने शब्द को तद्धितांत कहते हैं ।
जैसे-लघु + त = लघुता, बड़ा + आई = बड़ाई, सुंदर + त = सुंदरता, बूढ़ा + प = बुढ़ापा ।

कृत्-प्रत्यय के दो भेद हैं-
(क) विकारी कृत्-प्रत्यय (Vikari Krit Pratyay) – ऐसे कृत्-प्रत्यय जिनसे शुद्ध संज्ञा या विशेषण बनते हैं तथा
(ख) अविकारी या अव्यय कृत्-प्रत्यय (Avikari Krit Pratyay) – ऐसे कृत्-प्रत्यय जिनसे क्रियामूलक विशेषण या अव्यय बनते हैं।

विकारी कृत्-प्रत्यय के चार भेद हैं-(Vikari Krit Pratyay ke Bhed)
(a) क्रियार्थक संज्ञा, (b) कतृवाचक संज्ञा, (c) वर्तमानकालिक कृदंत तथा (d) भूतकालिक कृदंत ।

हिंदी क्रियापदों के अंत में कृत्-प्रत्यय के योग से छह प्रकार के कृदंत शब्द बनाये जाते हैं-
(i) कतृवाचक,
(ii) गुणवाचक,
(iii) कर्मवाचक,
(iv) करणवाचक,
(v) भाववाचक तथा
(vi) क्रियाद्योदक ।

(i) कर्तृवाचक- कर्तृवाचक कृत्-प्रत्यय उन्हें कहते हैं, जिनके संयोग से बने शब्दों से क्रिया करनेवाले का ज्ञान होता है । जैसे-वाला, द्वारा, सार, इत्यादि ।

कर्तृवाचक कृदंत निम्न तरीके से बनाये जाते हैं-
(क) क्रिया के सामान्य रूप के अंतिम अक्षर ‘ ना’ को ‘ने’ करके उसके बाद ‘वाला” प्रत्यय जोड़कर । जैसे-चढ़ना-चढ़नेवाला, गढ़ना-गढ़नेवाला, पढ़ना-पढ़नेवाला, इत्यादि (ख) ‘ ना’ को ‘न’ करके उसके बाद ‘हार’ या ‘सार’ प्रत्यय जोड़कर । जैसे-मिलना-मिलनसार, होना-होनहार, आदि ।
(ग) धातु के बाद अक्कड़, आऊ, आक, आका, आड़ी, आलू, इयल, इया, ऊ, एरा, ऐत, ऐया, ओड़ा, कवैया इत्यादि प्रत्यय जोड़कर ।
जैसे-पी-पियकूड, बढ़-बढ़िया, घट-घटिया, इत्यादि ।

(ii) गुणवाचक- गुणवाचक कृदंत शब्दों से किसी विशेष गुण या विशिष्टता का बोध होता है । ये कृदंत, आऊ, आवना, इया, वाँ इत्यादि प्रत्यय जोड़कर बनाये जाते हैं । जैसे-बिकना-बिकाऊ ।

(iii) कर्मवाचक- जिन कृत्-प्रत्ययों के योग से बने संज्ञा-पदों से कर्म का बोध हो, उन्हें कर्मवाचक कृदंत कहते हैं । ये धातु के अंत में औना, ना और नती प्रत्ययों के योग से बनते हैं । जैसे-खिलौना, बिछौना, ओढ़नी, सुंघनी, इत्यादि ।

(iv) करणवाचक- जिन कृत्-प्रत्ययों के योग से बने संज्ञा-पदों से क्रिया के साधन का बोध होता है, उन्हें करणवाचक कृत्-प्रत्यय तथा इनसे बने शब्दों को करणवाचक कृदंत कहते हैं । करणवाचक कृदंत धातुओं के अंत में नी, अन, ना, अ, आनी, औटी, औना इत्यादि प्रत्यय जोड़ कर बनाये जाते हैं। जैसे- चलनी, करनी, झाड़न, बेलन, ओढना, ढकना, झाडू. चालू, ढक्कन, इत्यादि ।

(v) भाववाचक- जिन कृत्-प्रत्ययों के योग से बने संज्ञा-पदों से भाव या क्रिया के व्यापार का बोध हो, उन्हें भाववाचक कृत्-प्रत्यय तथा इनसे बने शब्दों को भाववाचक कृदंत कहते हैं ! क्रिया के अंत में आप, अंत, वट, हट, ई, आई, आव, आन इत्यादि जोड़कर भाववाचक कृदंत संज्ञा-पद बनाये जाते हैं।
जैसे-मिलाप, लड़ाई, कमाई, भुलावा,

(vi) क्रियाद्योतक- जिन कृत्-प्रत्ययों के योग से क्रियामूलक विशेषण, संज्ञा, अव्यय या विशेषता रखनेवाली क्रिया का निर्माण होता है, उन्हें क्रियाद्योतक कृत्-प्रत्यय तथा इनसे बने शब्दों को क्रियाद्योतक कृदंत कहते हैं । मूलधातु के बाद ‘आ’ अथवा, ‘वा’ जोड़कर भूतकालिक तथा ‘ता’ प्रत्यय जोड़कर वर्तमानकालिक कृदंत बनाये जाते हैं । कहीं-कहीं हुआ’ प्रत्यय भी अलग से जोड़ दिया जाता है । जैसे-खोया, सोया, जिया, डूबता, बहता, चलता, रोता, रोता हुआ, जाता हुआ इत्यादि.
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