prayavaran ki surkeksha ke liye in in Hindi
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भारत में जल ,वायु ,ध्वनि आदि प्रदूषण को रोकने तथा अपने पृथ्वी को सुरक्षित रखने की उद्देश्य से केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड की स्थापना की गयी थी। अब तक अपने देश में पर्यावरण सम्बन्धी लगभग 200 कानून बनाये गए तथा समय समय पर इन्में संशोधन भी किया जाता है। संविधान की निति निर्देशक तत्वों एवं मूलकर्तव्यों में भी पर्यावरण संरक्षण की जिक्र की गयी। अनुच्छेद 48 ए के अंतर्गत पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्द्धन और वन और वन्यजीवों की रक्षा की निरदेश दिए गए है। पर्यावरण प्रबंधन के उचित संचालन केलिए पर्यावरणीय अनुसन्धान आवश्यक है। रासायनिक एवं जैविक हत्यारों की प्रयोग भूमि को तहस नहस कर सकते है। इसलिए भारत द्वारा 1925 में जेनेवा प्रोटोकॉल में हस्ताक्षर किया गया।
विज्ञान ने जैसे-जैसे उन्नति की है, वैसे-वैसे मनुष्य अपने सुख और सुविधा के लिए सामान जुटाता गया। गाँव में पक्की सड़के बन गयी। वाहनों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हुई शहरों का तेजी के साथ विकास हुआ खेती योग्य भूमि पर ऊँचे-ऊँचे मकान बन गये। जेनरेटरों के शोर और धुएँ ने शहरों के वातावरण को विषैला बना दिया क्या अपने कभी सोचा है कि जनजीवन में आ रहे इन परिवर्तनों का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ रहा है.
वायुमंडल एवं उसकी विभिन्न स्तर पर भी भी काफी हद तक फर्क पड़ा है। मानव ने अपने क्रिया-कलापों द्वारा पर्यावरण को प्रदूषित किया है। वनों की अंधाधुंध कटाई, वायु-प्रदूषण, जल स्त्रोतों में गिरता औद्योगिक कूड़ा-कचरा, वन्य प्राणियों का वध, परमाणुविक विस्फोट, युद्धों में प्रयुक्त घातक रासायनिक अस्त्र-शस्त्र आदि सभी क्रियाएं पर्यावरण को असंतुलित करती है। इसीलिए मानव के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह पर्यावरण को संतुलित बनाये रखने हेतु अपने अन्दर जागरूकता लाये। जैवमंडल का महत्त्व और पर्यावरण संरक्षण में सुधार किया जा सकता है।
विज्ञान ने जैसे-जैसे उन्नति की है, वैसे-वैसे मनुष्य अपने सुख और सुविधा के लिए सामान जुटाता गया। गाँव में पक्की सड़के बन गयी। वाहनों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हुई शहरों का तेजी के साथ विकास हुआ खेती योग्य भूमि पर ऊँचे-ऊँचे मकान बन गये। जेनरेटरों के शोर और धुएँ ने शहरों के वातावरण को विषैला बना दिया क्या अपने कभी सोचा है कि जनजीवन में आ रहे इन परिवर्तनों का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ रहा है.
वायुमंडल एवं उसकी विभिन्न स्तर पर भी भी काफी हद तक फर्क पड़ा है। मानव ने अपने क्रिया-कलापों द्वारा पर्यावरण को प्रदूषित किया है। वनों की अंधाधुंध कटाई, वायु-प्रदूषण, जल स्त्रोतों में गिरता औद्योगिक कूड़ा-कचरा, वन्य प्राणियों का वध, परमाणुविक विस्फोट, युद्धों में प्रयुक्त घातक रासायनिक अस्त्र-शस्त्र आदि सभी क्रियाएं पर्यावरण को असंतुलित करती है। इसीलिए मानव के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह पर्यावरण को संतुलित बनाये रखने हेतु अपने अन्दर जागरूकता लाये। जैवमंडल का महत्त्व और पर्यावरण संरक्षण में सुधार किया जा सकता है।
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