Hindi, asked by limieshi8, 10 months ago

prem dhan ki Chaya smriti nibandh ka mukhya bhav spasht kijiye​

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Answered by bhawana9129
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Answered by bhatiamona
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प्रेमघन की छाया स्मृति (निबंध)

रामचंद्र शुल्क जी ने प्रेमघन की छाया स्मृति में शुल्क जी ने हिंदी भाषा और साहित्य के प्रति अपने प्रारंभिक रुझानों का बड़ा रोचकवर्णन किया है| उनका बचपन साहित्यिक परिवेश से भरापूरा था| हिंदी के प्रति आकर्षित और रचनाकार के व्यक्तित्व निर्माण आदि से संबंधित पहलुओं का चित्रण के बारे में वर्णन किया है|

               रामचंद्र शुल्क जी के पिता जी फारसी भाषा के विद्वान थे| वह प्राचीन हिंदी भाषा के प्रशंसक थे|  उन्हें भारतेन्दु जी के नाटक बहुत पसंद थे|

आचार्य रामचंद्र शुल्क 8 बज़े वर्ष के थे , तब उनके पिजा जी का तबादला मिर्जापुर हो गया था| उन्हें पता चला की भारतेन्दु मंडल के प्रिसद्ध कवि उपाध्याय बदरीनारायण प्रेमघन पास ही रहते है| शुक्ल जी के मन में उनके दर्शन करने की अभिलाषा उत्पन्न हुई| समय के साथ साथ हिन्दी के नूतन साहित्य के तरह उनका रुझान बढ़ता गया|  

                इसे आचार्य रामचंद्र शुल्क ने वीरगाथा कल कहा | आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी   ने आदिकाल से नामकरण किया |  आदिकाल युग में तीन रसों का निर्वाह हुआ है : वीर रस (चारण काव्य ), श्रृंगार रस (चारण काव्य तथा विद्या पति की पदावली और कीर्ति लता में) तथा शांत रस ( धार्मिक साहित्य में) ।  

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