Prem Madhuri Kavita ki Hindi mein Vyakhya kijiye
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“प्रेम माधुरी” हिंदी के प्रख्यात कवि ‘भारतेन्दु हरिश्चंद्र’ द्वारा रचिता एक काव्य संग्रह है। ये काव्य संग्रह बहुत बड़ा है अतः यहाँ पर उसकी संपूर्ण व्याख्या संभव नही है। इस काव्य संग्रह की संक्षिप्त व्याख्या इस प्रकार है।
‘प्रेम माधुरी’ की व्याख्या.....
‘प्रेम माधुरी° काव्य संग्रह में ‘भारतेंदु हरिश्चंद्र जी’ ने उस प्रसंग का वर्णन किया है। जब भगवान श्री कृष्ण ब्रजभूमि को छोड़कर मथुरा चले गए होते हैं। उस अवस्था में ब्रज की गोपियां जो उनके प्रति प्रेम-अनुराग रखती थीं, वो श्रीकृष्ण के विरह-वियोग में पागल सी हो गयी हैं। विरह से उनकी क्या दशा होती है इस कविता में कवि ने गोपियों की उसी दशा का वर्णन किया है।
वर्षा ऋतु का आगमन हो चुका है। कदंब के वृक्ष पर कोयलों का मधुर स्वर गूंजने लगा है। मेढकों की आवाजें आने लगी है। मयूर वन-वन में नाचने लगे हैं, और सारे लोग अपने-अपने प्रियजनों के साथ इस वर्षा ऋतु के मनोहारी दृश्यों को देखकर पुलकित हो रहे हैं, प्रसन्न हो रहे हैं। चारों तरफ मदमस्त और उल्लास का वातावरण है, लेकिन इस सुहावने और उल्लास वाले वातावरण में भी दक्ष की गोपियां भगवान श्री कृष्ण के मथुरा चले जाने के कारण उनके विरह में अत्यंत दुखी हैं।
जब श्री कृष्ण मथुरा जा रहे थे तब उन्होंने गोपियों से वायदा किया था कि वे शीघ्र ही वापस आ जाएंगे, लेकिन बहुत समय बीत गया श्रीकृष्ण वापस नहीं आए। श्रीकृष्ण ने अपने एक दूत उद्धवजी को गोपियों के पास भेजा है। उद्धवजी कृष्ण का संदेश गोपियों के लिए लाए हैं। उद्धव गोपियों को निर्गुण-निराकार ब्रह्म की उपासना का संदेश देते हैं। ऐसे में गोपियां उनसे कहती हैं यह हमारा मन तो कृष्ण मे रम चुका है। हम किसी अन्य की उपासना नहीं कर सकते। हमारा मन श्रीकृष्ण से अलग नहीं हो सकता। आपका हमको यह उपदेश देना व्यर्थ है। पूरी कविता में उद्धव जी और गोपियों के हुये संवाद का वर्णन है। उद्धवजी बार-बार उनकों ब्रह्म की उपासना करने का सुझाव देते हैं लेकिन गोपियां उनकी बात मानने से इंकार कर देती हैं। गोपियां कहती है कि वो केवल कृष्ण की भक्ति ही कर सकती हैं। वो कृष्ण की प्रतीक्षा प्राण निकलने तक करेंगी।
Explanation:
Pramemadhuri
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