Premchand ki kahani Kala ke varnan
karte hue
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प्रेमचंद के साहित्यिक जीवन का सूत्रपात इसी तरह हुआ। ... जिसका वास्तविक विकास प्रथम महायुद्ध के पश्चात् सन् 1919 से 1959 के बीच हुआ। साम्राज्यवादी शोषण के साथ-साथ जमींदारों व महाजनों की क्रूर नीतियों से जनसाधारण की चेतना कुंद हो चुकी थी, क्रांति के शोले भड़कने को आतुर थे।
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