Premchand ki kahani - mantra ka pramukh patra bhagat ka charitra chitran
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मंत्र’ कहानी में तीन प्रमुख पात्र हैं। पहला समर्थ मनुष्य डाॅ. चडढा। दूसरा सर्वहारा-दीन-जीव भगत। तीसरा एकलवर्गी सम्पन्नता-विपन्नता, ऊंचता-नीचता विहीन सांप। जैसा कि प्रेमचंद इनका हुलिया बताते हैं, डाक्टर चड्ढा व्यस्त, प्रतिष्ठित, मंहगे खेल के शौकीन, स्वस्थ पचास वर्षीय फुर्तीले व्यक्ति हैं। भगत बूढ़ा, जर्जर, कुशकाय, रस्सीकस है। सांप एक खाते पीते शौकीन घर का हृष्टपुष्ट प्राणी है।
कथा का आरंभ ऐसे होता है कि डा. गोल्फ खेलने अपने बंगले से निकलकर कार की तरफ बढ़ते हैं, तभी एक बूढ़ा आदमी अपने दस दिन से बीमार और मूच्र्छित बच्चे को लेकर आता है। व्यस्त डाक्टर खेलने के
समय में से एक मिनट भी बीमार को देखने के लिए नहीं निकाल पाते। वे खेलने की विवशता और समयसारिणी से बंधे हुए हैं। बूढ़े की करुण पुकार, अनुनय-विनय, पगड़ी तक उस बंधन को शिथिल नहीं कर पाती। बूढ़ा देखता रह जाता है और डाक्टर की कार चली जाती है। उसी रात बूढ़े का इकलौता बेटा उपचार के अभाव में मर जाता है।
इधर सम्पन्न, व्यस्त और सभ्य डाक्टर की तीन सन्तानों में एक पुत्र है। पुत्र को भारतीय समाज-भूमि में ‘वंश-बीज’ कहते हैं। वही दाम्पत्य की ‘सर्वोच्च-उपलब्धि’ होती है। मनुष्य की चिकित्सा करनेवाले डाक्टर के इस ‘सहज-सम्पन्न’ पुत्र कैलाश को ‘सांपों को पालने और उनसे खेलने का शौक’ है।