Priksha ka bhayaa in hind
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हमारी एस .एस .सी .की परीक्षा प्रारंभ होने वाली थी । हमारा पहला परचा अंग्रेजी भाषा का होनेवाला था । वैसे तो मैं अन्य विषय अच्छे से पढ़ लेता हूं किंतु अंग्रेजी भाषा ने मेरा हाथ कुछ तंग है । तैयारी तो अच्छी की थी किंतु दूसरे दिन परीक्षा के भय से भयभीत होकर मुझे लगा कि मैं सब कुछ भूलता जा रहा हूं इसलिए मैंने सुबह से ही पुनश्च: पुनरावृत्ति करना आरंभ कर दिया था । प्रश्नोत्तर मैें पढ़ चुका था अब व्याकरण की बारी थी |
जैसे-जैसे परीक्षा का समय निकट आ रहा था मेरे दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी | हाथों में पसीना आने लगा था | मुझे लग रहा था कि कहीं परचा देखकर मैं सब कुछ भूल ना जाऊं। मैंने अपने आप को संभाला और शांति से बैठकर व्याकरण की पुस्तक लेकर पढ़ने लगा इतने में मां ने आवाज लगाई "जल्दी से नाश्ता कर लो 2 घंटे बाद तुम्हारा पेपर है |"
मेरी भूख प्यास सब कुछ बंद हो चुकी थी किंतु मां के दुराग्रह पर मुझे नाश्ता करना पड़ा | मैंने बा - मुश्किल दो निवाले खाए और जल्दी से पानी पीकर तुरंत किताब खोल कर बैठ गया |इतने में पिताजी की आवाज आई "बेटा,तुमने अपना प्रवेश पत्र इत्यादि सब रख लिए हैं ? जांच लो | " मैंने एक बार अपना बटुआ फिर से खोला और उसमें सब आवश्यक चीज़े जांच ली | इतने में मां ने आवाज लगाई "बेटा एक चम्मच दही खा लो और ईश्वर को प्रणाम करो तुम्हारा प्रश्नपत्र अच्छा जाएगा । "
मैंने अब पुस्तक बंद कर दी | 2 मिनट के लिए आंखें बंद की और अपने इष्ट को स्मरण किया | हाथ जोड़कर बोला हे ईश्वर परीक्षा के समय मैंने जो कुछ भी पढा है वह सब मुझे याद आ जाए | मैं कुछ भी ना भूलूं , मैं उठ खड़ा हुआ | ईश्वर तथा मां - पिताजी के चरणों में प्रणाम किया | दही का शगुन खाकर मैं परीक्षा भवन के लिए निकल पडा।
परीक्षा भवन आते ही मेरा हृदय जोर - जोर से धड़कने लगा । मै सोच रहा था - जाने परीक्षा में क्या होगा ? "कलेजा मजबूत करके मैं आगे बढ़ ही रहा था कि हमारे कक्षा -अध्यापक से मुलाकात हो गई | उन्होंने मुझे समझाया कि डरने की जरूरत नहीं है । कमरे में आते ही घंटी बजी और सभी विद्यार्थी अपनी अपनी जगह पर बैठ गए | इतने में निरीक्षक महोदय ने उत्तर पुस्तिकाएं बांटी।
मैं अनुक्रमांक लिख रहा था | मुझे प्रतीत हुआ कि मेरे हाथ कांप रहे हैं | मैंने स्वयं को जैसे - तैसे संभाला। इतनेे में घंटी बजी | प्रश्न पत्र बांट दिए गए | मैंने भगवान का स्मरण कर प्रश्नपत्र की ओर देखा |प्रश्नपत्र सरल व पांच भागो में बंटा हुआ था | ध्यानपूर्वक पढ़कर मैंने लिखना आरंभ कर दिया | एक घंटा बीता | मेरे प्रश्न के दो विभाग भी पूरे नहीं हुए थे | मै घबरा गया | मैंने अपनी कलम की गति तेज की | दूसरे घंटे में मेरे चार वि-भाग पूर्ण हो गए थे | अब मेरी जान में जान आयी |
अंतिम घंटे के कुछ पांच मिनट पूर्व ही मैंने अपना परचा पूरा कर लिया था | मै अब शीघ्रता से उत्तरपुस्तिका की जांच करने लगा | अंतिम घंटीबजते ही मेरी जांच भी पूरी हुई | मैंने समीप आये निरीक्षक को परचा सौंपा और राहत की सांस ली |