Prithvi grah kahani mein Munshi Premchand ka samaj Ko Kya sandesh Dena chahte Hain Hindi
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एक सदी बीत जाने के बाद भी प्रेमचंद की कृतियों ने अपनी प्रासंगिकता नहीं गंवाई है। प्रेमचंद आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने वे स्वतंत्रता से पूर्व के समय में थे। उनके साहित्य और जिन चरित्रों का उन्होंने चित्रण किया, जिन समस्याओं के बारे में उन्होंने बात की, आज भी हम उनसे उबरने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। चाहे वह गरीबी हो या जाति के आधार पर भेदभाव, ये चीजें आज भी हमारे समाज में हैं और स्थिति बद से बद्तर हुई है। ‘होरी’ और ‘धनिया’ अब भी हमारे गांवों में हैं।
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