Prithvi
को बचाने के लिए पर्यावरण वयान आवश्यक है। इस पर प्रकाव डालिए
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पर्यावरण प्रदूषण के चलते पृथ्वी ही नहीं जल तथा वायु भी प्रभावित हो रही है। इससे बचने के लिए वन्य संरक्षण के अलावा पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले अन्य कारणों पर भी विचार करना होगा। पृथ्वी को संरक्षित कर ही मानव जीवन को बचाया जा सकता है।
पर्यावरण प्रदूषण के चलते पृथ्वी ही नहीं जल तथा वायु भी प्रभावित हो रही है। इससे बचने के लिए वन्य संरक्षण के अलावा पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले अन्य कारणों पर भी विचार करना होगा। पृथ्वी को संरक्षित कर ही मानव जीवन को बचाया जा सकता है।यह कहना है सत्येन्द्र नाथ मतवाला का। शहीद स्मारक समिति व पर्यावरण एवं वृक्ष सुरक्षा समिति के तत्वावधान में पृथ्वी दिवस पर कटरा स्थित कार्यालय पर शुक्रवार को आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि जिस गति से तापमान वृद्धि हो रही है। अप्रत्याशित बारिश व सुनामी जैसी प्राकृतिक विपत्तियां आ रही हैं, वह दुनिया के लिए चेतावनी है। गोष्ठी में चन्द्रबली मिश्र ने कहा कि पर्यावरण प्रदूषण से बचाने के लिए परमाणु प्रसार पर रोक के अलावा विभिन्न प्रकार के विलासिता के संसाधनों से बचने की जरूरत है। साथ ही पौधरोपण कर पर्यावरण संतुलन बनाने की दिशा में भी कदम उठाने होंगे। तभी पृथ्वी का अस्तित्व बचाया जा सकता है।
पर्यावरण प्रदूषण के चलते पृथ्वी ही नहीं जल तथा वायु भी प्रभावित हो रही है। इससे बचने के लिए वन्य संरक्षण के अलावा पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले अन्य कारणों पर भी विचार करना होगा। पृथ्वी को संरक्षित कर ही मानव जीवन को बचाया जा सकता है।यह कहना है सत्येन्द्र नाथ मतवाला का। शहीद स्मारक समिति व पर्यावरण एवं वृक्ष सुरक्षा समिति के तत्वावधान में पृथ्वी दिवस पर कटरा स्थित कार्यालय पर शुक्रवार को आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि जिस गति से तापमान वृद्धि हो रही है। अप्रत्याशित बारिश व सुनामी जैसी प्राकृतिक विपत्तियां आ रही हैं, वह दुनिया के लिए चेतावनी है। गोष्ठी में चन्द्रबली मिश्र ने कहा कि पर्यावरण प्रदूषण से बचाने के लिए परमाणु प्रसार पर रोक के अलावा विभिन्न प्रकार के विलासिता के संसाधनों से बचने की जरूरत है। साथ ही पौधरोपण कर पर्यावरण संतुलन बनाने की दिशा में भी कदम उठाने होंगे। तभी पृथ्वी का अस्तित्व बचाया जा सकता है।अफजल हुसेन ने पृथ्वी को बचाने के लिए सभी को संकल्पित होने का आह्वान किया। समिति के सचिव रामेश्वर दत्त ओझा ने वनाच्छादन पर जोर देते हुए कहा कि पृथ्वी की सुरक्षा तभी संभव हो सकेगी जब धरती के एक तिहाई हिस्से में वन क्षेत्र होगा।