Psychology, asked by krishna9650038, 11 months ago

prithvi per jivan ki utpatti ke siddhanton aur parikshano ko bataiye

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Answered by Indianpatriot
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सब जीवों की विशेषता यह है कि वे प्रजनन कर सकते हैं यानी अपनी प्रजाति की संख्या बढ़ा सकते हैं। इसका कारण यह है कि जीवों के शरीर ऐसे पदार्थ से बने होते हैं जिनमें अपने आसपास से पोषण ले कर अपने शरीर में वृद्धि करने की और फिर इस शरीर से अपने समान अन्य जीव बनाने की क्षमता होती है। प्रश्न यह है कि पृथ्वी पर ऐसा पदार्थ सबसे पहले बना कैसे? दूसरे शब्दों में, पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत कैसे हुई?

इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए कई वैज्ञानिक वर्षों से जुटे हुए हैं। रसायन शास्त्री अरेनियस ने यह सुझाव दिया था कि जीवन की शुरुआत किसी अन्य ग्रह पर हुई थी और फिर वहां से जीव बीजाणुओं यानी स्पोर्स के रूप में पृथ्वी पर आए। किंतु यह जीवन की उत्पत्ति की नहीं बल्कि इस बात की व्याख्या है कि जीव कैसे फैले।

उन्नीसवीं शताब्दी तक कई लोग यह सोचते थे कि निर्जीव पदार्थों से जीव अपने आप पैदा हो जाते हैं; जैसे गोबर से इल्लियां या कीचड़ से मेंढक बन जाते हैं। किंतु फ्रांस के वैज्ञानिक लुई पाश्चर ने दिखा दिया कि यह संभव नहीं है। केवल एक जीव से ही दूसरा जीव पैदा हो सकता है। 1871 में अंग्रेज़ वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन ने सुझाव दिया कि जीवन की शुरुआत संभवत: गुनगुने पानी से भरे एक ऐसे उथले पोखर में हुई होगी जिसमें ‘सब प्रकार के अमोनिया और फॉस्फोरिक लवण होंगे जिन पर प्रकाश, ऊष्मा और विद्युत की क्रिया होती रही होगी।’ इससे एक प्रोटीनयुक्त यौगिक बना होगा जिसमें और परिवर्तन हो कर पहले जीव बने होंगे।    

1924 में रूसी वैज्ञानिक अलेक्ज़ेंडर ओपारिन ने यह तर्क दिया कि वातावरण में स्थित ऑक्सीजन कार्बनिक अणुओं के संश्लेषण को रोकती हैं और जीवन की उत्पत्ति के लिए कार्बनिक अणुओं का बनना अनिवार्य है। किसी ऑक्सीजन-रहित वातावरण में सूर्य के प्रकाश की क्रिया से कार्बनिक अणुओं का एक ‘आदिम शोरबा’ (प्राइमीवल सूप) बन सकता है। इनसे किसी जटिल विधि से संलयन (फ्यूजन) हो कर नन्ही बूंदें बनी होंगी जिनकी और अधिक संलयन से वृद्धि हो कर ये विभाजन के द्वारा अपने समान अन्य जीव बना सकती होंगी। लगभग इसी समय अंग्रेज़ वैज्ञानिक जे.बी.एस. हाल्डेन ने भी इसी से मिलता-जुलता सुझाव दिया। उनकी परिकल्पना के अनुसार उस समय पृथ्वी पर स्थित समुद्र आज के समुद्रों की तुलना में बहुत भिन्न रहे होंेगे और इनमें एक ‘गरम पतला शोरबा’ बना होगा जिसमें ऐसे कार्बनिक यौगिक बने होंगे जिनसे जीवन की इकाइयां बनती हैं।

1953 में स्टेनली मिलर नामक विद्यार्थी ने अपने प्रोफेसर यूरी के साथ मिल कर एक प्रयोग किया जिसमें उन्होंने मीथेन, अमोनिया और हाइड्रोजन के मिश्रण में अमीनो अम्लों का निर्माण करवाने में सफलता पाई। इससे ओपारिन के सिद्धांत की पुष्टि हुई। आज इस सिद्धांत को लगभग सभी वैज्ञानिकों के द्वारा मान्य किया जाता है। फिर भी, समय-समय पर नए-नए सिद्धांत प्रस्तुत किए जाते हैं। अलबत्ता, कुछ बातों पर आम सहमति है, जैसे:

1. पृथ्वी पर जीवन की शुरूआत लगभग 4 अरब वर्ष पहले हुई थी।

2. उस समय के समुद्रों के पानी का संघटन आज के समुद्रों के पानी से बहुत भिन्न था।

3. शुरुआत में पृथ्वी के वातावरण में ऑक्सीजन नहीं थी, धीरे-धीरे ऑक्सीजन बनती गई और अंतत: वह वर्तमान स्तर तक पहुंची। ऑक्सीजन बनाने का काम हरे पौधे करते हैं जो प्रकाश संश्लेषण के दौरान वातावरण से कार्बन डाईऑक्साइड ले कर ऑक्सीजन छोड़ते हैं। पृथ्वी पर सबसे पहले विकसित होने वाले हरे पौधे सायनोबैक्टीरिया नामक हरे शैवाल थे। अत: यह अनुमान लगाया जा सकता है कि सबसे पहले बनने वाले जीव ऑक्सीजन की सहायता से श्वसन नहीं करते थे, अपितु अनॉक्सी श्वसन से काम चलाते थे। आजकल के अधिकांश जीवों को ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ती है।

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