Hindi, asked by kuldeepsachdev746, 10 months ago

Privatization meaning in hindi nd impact of education in hindi

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Answered by ankitsharma26
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निजीकरण and ”तमसो मा ज्योतिर्गमय” अर्थात् अधंकार से मुझे प्रकाश की ओर ले जाओ- यह प्रार्थना भारतीय संस्कृति का मूल स्तम्भ है । प्रकाश में व्यक्ति को सब कुछ दिखाई देता है, अन्धकार में नहीं ।

प्रकाश से यहाँ तात्पर्य ज्ञान से है । ज्ञान से व्यक्ति का अंधकार नष्ट होता है । उसका वर्तमान और भावी जीने योग्य बनता है । ज्ञान से उसकी सुप्त इन्द्रियाँ जागृत होती हैं । उसकी कार्य क्षमता बढ़ती है जो उसके जीवन को प्रगति पथ पर ले जाती है ।

शिक्षा का क्षेत्र सीमित न होकर विस्तृत है । व्यक्ति जीवन से लेकर मृत्यु तक शिक्षा का पाठ पढ़ता है । प्राचीन काल में शिक्षा गुरुकुलों में होती थी । छात्र पूर्ण शिक्षा ग्रहण करके ही घर वापिस लौटता था । लेकिन आज जगह-जगह सरकारी और गैर-सरकारी विद्यालयों में शिक्षण कार्य होता है ।

वहां पर शिक्षक भिन्न-भिन्न विषयों की शिक्षा देते हैं । छात्र जब पढ़ने के लिए जाता है तब उसका मानसिक स्तर धीरे-धीरे ऊपर उठने लगता है। उसके मस्तिष्क में तरह-तरह के प्रश्न उठते हैं जैसे- तारे कैसे चमकते हैं ? आकाश में व्यक्ति कैसे पहुँच जाता है ? पृथ्वी गोल है या चपटी ? रेडियो में ध्वनि और टेलीविजन में तस्वीर कैसे आती है ?

इन सब प्रश्नों का उत्तर हमें शिक्षा के द्वारा मिलता है । जैसे-जैसे हम शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ते जाते हैं, वैसे-वैसे हमारा ज्ञान विस्तृत होता जाता है । ज्ञान का अर्थ केवल शब्द ज्ञान नहीं अपितु अर्थ ज्ञान है । यदि सम्पूर्ण पड़े हुए विषय का अर्थ न जाना जाए तो यह गधे की पीठ पर रखे हुए चंदन के भार की भांति परिश्रम कारक या निरर्थक होता है ।

अर्थात् जिस तरह चन्दन की लकड़ी को ढोने वाला गधा केवल उस के भार का ही ज्ञान रखता है किन्तु चन्दन की उपयोगिता को नहीं जान सकता । उसी प्रकार जो विद्वान अनेक शास्त्रों का अध्ययन बिना अर्थ समझे करें वह उन गधों की भांति ग्रन्थ-भार मात्र के वाहक हैं ।

विद्या सर्वश्रेष्ठ धन है । इसे चोर भी चुरा नहीं सकता । जो दूसरों को देने पर बढ़ता है । विदेश में विद्या ही अच्छा मित्र है । विद्या से विनय, विनय से योग्यता, योयता से धन और धर्म, धर्म से सब सुख प्राप्त होते हैं । ज्ञान से बुद्धि तीव्र होती है
जहां राजाओं ने लड़ाइयाँ तलवार की नोंक पर जीतीं और साम्राज्य स्थापित किए, वहीं चाणक्य ने अपनी बुद्धि से सम्पूर्ण नन्द वंश का नाश कर चन्द्रगुप्त को राजा बनाया । यहां जीत बुद्धि की हुई जिसे धार दी ज्ञान ने । विद्या और सुख एक साथ प्राप्त नहीं हो सकते ।

सुख चाहने वाले को विद्या और विद्या चाहने वाले को सुख त्याग देना चाहिए । विद्याहीन पशु-समान है । जिसे कोई पसन्द नहीं करता । इसलिए श्रेष्ठ विद्वान् से ही उत्तम विद्या प्राप्त करनी चाहिए, भले ही वह किसी भी जाति का क्यों न हो –

उत्तम विद्या लीजिए यद्यपि नीच पै होय। परयौ अपावन ठौर में कंचन तजत न कोय ।।

शिक्षा व्यक्ति को ज्ञान के प्रकाश से शुभाशुभ, भले बुरे की पहचान कराके आत्म विकास की प्रेरणा देती है । उत्रति का प्रथम सोपान शिक्षा है । उसके अभाव में हम लोकतंत्र और भारतीय संस्कृति की रक्षा नहीं कर सकते ।
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