Priya Mitra ke upar nibandh
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'मित्रता' शब्द स्वयं में प्यार, सम्मान, विश्वास और साथ जैसे भावों का समन्वय लिए हुए है। यह ईश्वर की दी हुई अनमोल धरोहर है जिसकी तुलना नहीं की जा सकती। एक सच्चा मित्र उस रामबाण औषधि की तरह होता है जो किसी भी असाध्य रोग को ठीक करने की शक्ति रखता है। सच्चा मित्र हर विषम परिस्थितियों में आपके कंधे से कंधा मिलाकर चलता है। वह माता-पिता के बाद आपका दूसरा सबसे बड़ा हितैषी होता है। आपके हृदय के गूढ़ से गूढ़ रहस्य को जानने वाला विश्वासपात्र एक मित्र के सिवाए दूसरा कोई नहीं होता। इतिहास में हमें मित्रता के अनेकों ऐसे उदाहरण मिल जाएँगे जिन्होंने अपनी मित्रता की मिसाल कायम की है – पृथ्वीराज चौहान और चाँद बरदाई, श्री कृष्ण और सुदामा, भगवान राम और वानर राज सुग्रीव।
इसी तरह की मेरी मित्र है 'सोनिया'। हम दोनों कुछ अरसे पहले एक ही साथ कार्य किया करते थे। सोनिया में एक सच्चे मित्र के सारे गुण विद्यमान थे। सच्चे मित्र की भाँति उसने मेरे सुख में ही साथ नहीं दिया अपितु दुख में भी एक अडिग दीवार की भाँति मेरे साथ खड़ी रही। उसकी मित्रता ने मुझे मैत्री का सही पाठ पढ़ाया। उसके अंदर मैंने अपने सभी रिश्तों का समन्वय देखा। वह माता की तरह धैर्यपूर्वक मुझे सुनती, पिता की भाँति मेरा मार्गदर्शन करती, बहन की भाँति सम्भालती थी। उसने कई विषम परिस्थितियों से मुझे उभारा है। मुझे ऐसा कभी प्रतीत नहीं हुआ कि हम दोनों अलग स्वभाव के दो व्यक्ति हैं। उसकी सोच मेरी सोच से व मेरी सोच उसकी सोच से कब मिलकर एक हो गई मुझे इस बात का आभास भी नहीं हुआ। वह सदैव मेरी हर प्रकार की सहायता के लिए मेरे सम्मुख खड़ी रहती। उसने अपने हित के स्थान पर मेरे हित को सदैव प्रथम स्थान दिया। हम दोनों में कभी कोई दुख या छुपाव नहीं रहा।
मेरे व उसके बीच कभी वाद-विवाद नहीं हुआ। वह हमेशा मेरे मान-सम्मान के प्रति सजग रहती है। कभी किसी और के आगे वह मेरा अपमान नहीं करती है और न ही किसी के द्वारा किया गया मेरा अपमान सहन करती है। वह सबके आगे मेरे गुणों व स्वभाव का बख़ान करती है जिससे समाज में मेरी प्रतिष्ठा बढ़े। इसका तात्पर्य यह भी नहीं कि वह मेरे अवगुणों को अनदेखा कर देती है बल्कि एक सच्चे मार्गदर्शक की तरह मेरी त्रुटियों और अवगुणों को दूर करने का प्रयास करती है। वह मेरे प्रति सजग रहती है। वह स्वयं स्वभाव से धैर्यशाली, भावुक और संवेदनशील है। उसके यही गुण मुझे उसकी ओर आकर्षित करते रहे हैं। यही गुण सदैव मुझे बल देते हैं। डूबते हुए को जिस प्रकार तिनके का सहारा भी बहुत होता है। मेरे जीवन में मेरी मित्र का सहारा ही बहुत है। उसकी मित्रता भगवान द्वारा दिया हुआ वरदान है जिसका मैं सदैव आदर करती हूँ। इसलिए मैं यह मानती हूँ कि एक सच्चा मित्र आपके जीवन को सही दिशा निर्देश दे सकता है क्योंकि वही आपके सबसे समीप होता है। यदि मित्र सही न हो तो आपका जीवन एक ऐसी गलत दिशा में बढ़ सकता है जहाँ सिवाए भटकाव के अलावा कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता। हमें चाहिए कि मित्र बनाते समय इस बात का ध्यान रखें कि आपका मित्र एक अच्छे स्वभाव वाला समझदार व्यक्ति हो। जो व्यक्ति स्वयं पथभ्रष्ट हो वह आपको कैसे दिशा निर्देश देगा वह तो आपको भी अपने साथ पथभ्रष्ट कर देगा। अंत में इस का समर्थन करती हूँ कि सच्चा मित्र मिलना कठिन है। यदि मिल जाए तो स्वयं को इस संसार में सौभाग्यशाली जानिए। अपने पर गर्व कीजिए कि आपके पास एक सच्चा मित्र है।
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