propkar hi Jivan Hain par anuched
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Explanation:
A precipitation reaction refers to the formation of an insoluble salt when two solutions containing soluble salts are combined. The insoluble salt that falls out of solution is known as the precipitate, hence the reaction's name. Precipitation reactions can help determine the presence of various ions in solution.
Explanation:
परोपकार शब्द ‘पऱउपकार’ इन दो शब्दों के योग से बना है । जिसका अर्थ है निःस्वार्थ भाव से दूसरों की सहायता करना ।अपनी शरण में आए मित्र, शत्रु, कीट-पतंग, देशी-परदेशी, बालक-वृद्ध सभी के दुःखों का निवारण निष्काम भाव से करना परोपकार कहलाता है । ईश्वर ने सभी प्राणियों में सबसे योग्य जीव मनुष्य बनाया । परोपकार ही एक ऐसा गुण है जो मानव को पशु से अलग कर देवत्व की श्रेणी में ला खड़ा करता है । पशु और पक्षी भी अपने ऊपर किए गए उपकार के प्रति कृतज्ञ होते हैं । मनुष्य तो विवेकशील प्राणी है उसे तो पशुओं से दो कदम आगे बढ़कर परोपकारी होना चाहिए ।प्रकृति का कण-कण हमें परोपकार की शिक्षा देता है- नदियाँ परोपकार के लिए बहती है, वृक्ष धूप में रहकर हमें छाया देता है, सूर्य की किरणों से सम्पूर्ण संसार प्रकाशित होता है । चन्द्रमा से शीतलता, समुद्र से वर्षा, पेड़ों से फल-फूल और सब्जियाँ, गायों से दूध, वायु से प्राण शक्ति मिलती है। राजा रंतिदेव को चालीस दिन तक भूखे रहने के बाद जब भोजन मिला तो उन्होंने वह भोजन शरण में आए भूखे अतिथि को दे दिया पर । उपकार अर्थात दूसरों के हित के लिए किया गया कार्य ही परोपकार कहलाता है। मनुष्य वही है जो दूसरों के लिए काम आए। अंपने लिए तो सभी जीते हैं लेकिन जीवन उसका सफल है जो दूसरों की भलाई करे । संसार में परोपकार ही व गुण है जिससे मनुष्य में अथवा जीवन में सुख की अनुभूति होती है। समाज सेवा की भावना देश प्रेम की भावना देश भक्ति की भावना , दुख में पीड़ित लोगों की सहायता करने की भावना यह सब कार्य व्यक्तियों की निशानी है।परोपकार का सबसे बड़ा लाभ है आत्म संतुष्टि, आत्मा को शांति मिलना कि मैंने दूसरों के हित के लिए यह काम किया है। परोपकार निस्वार्थ भाव से किया जाता है किंतु इसके बदले में परोपकारी प्राणी को वो संपत्ति प्राप्त हो जाती है जो लाखों रुपए देकर भी नहीं खरीदी जा सकती वह संपत्ति है मन का सुख। परोपकार का अर्थ होता है दूसरों का अच्छा करना। परोपकार का अर्थ होता है दूसरों की सहयता करना। परोपकार की भावना मानव को इंसान से फरिश्ता बना देती है। परोपकार के समान कोई धर्म परोपकार ऐसा कृत्य है जिसके द्वारा शत्रु भी मित्र बन जाता है। जीवन में परोपकार का बहुत महत्व है। परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः परोपकाराय वहन्ति नद्यः । परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकारार्थ मिदं शरीरम् ॥ जिस तरह से वृक्ष कभी भी अपना फल नहीं खाता है, नदी अपना पानी नहीं पीती है, सूर्य हमें रोशनी देकर चला जाता है। परोपकार एक उत्तम आदर्श का प्रतीक है। पर पीड़ा के समान कुछ भी कार्य अधर्म एवं निष्कृष्ट नहीं है। गोस्वामी तुलसीदास ने परोपकार के बारे में लिखा- “परहित सरिस धर्म नहिं भाई।पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।” विज्ञान ने इतनी उन्नति कर ली है कि मरने के बाद भी हमारी नेत्र ज्योति और अन्य कई अंग किसी अन्य व्यक्ति के जीवन को बचाने का काम कर सकते है। इनका जीवन रहते ही दान कर देना महान उपकार है। दया, प्रेम, अनुराग, करुणा, एवं सहानुभूति आदि के मूल में परोपकार की भावना है। वृक्ष फलते दृ फूलते हैं, सरिताये प्रवाहित है। सूर्य एवं चंद्रमा प्रकाश लुटाकर मानव के पथ को आलोकित करते है। बादल पानी बरसाकर थे को हरा-भरा बनाते हैं, जो जीव- जंतुओं को राहत देते हैं। प्रकृति का कण-कण हमें परोपकार की शिक्षा देता है- नदियाँ परोपकार के लिए बहती है, वृक्ष धूप में रहकर हमें छाया देता है, चन्द्रमा से शीतलता, समुद्र से वर्षा, गायों से दूध, वायु से प्राण शक्ति मिलती है। परोपकारी मानव के हृदय में शांति तथा सुख का निवास है। परोपकार की ह्रदय में कटुता की भावना नहीं होती है। अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् । उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।। समस्त पृथ्वी ही उनका परिवार होती है। यदि हम अपने प्राचीन इतिहास पर दृष्टिपात करें तो हमें दानवीर कर्ण, भगवान बुद्ध, महावीर स्वामी, गुरुनानक, महर्षि दयानन्द, विनोबा भावे, आदि अनेक महापुरुष इसके उदाहरण हैं। जिनसे ज्ञात होता है कि किस तरह यहां के लोगों ने परोपकार के लिए अपनी धन-सम्पत्ति तो क्या अपने घर-द्वार, राजपाट और आवश्यकता पड़ने पर अपने शरीर तक अर्पित कर दिए। महर्षि दधीचि के उस अवदान को कैसे भुला सकते हैं जिन्होंने देवताओं की रक्षा के लिए अपने प्राण सहर्ष ही न्यौछावर कर दिए थे अर्थात् उनकी हड्डियों से वज्र बनाया गया जिससे वृत्रासुर राक्षस का वध हुआ। राजा शिवि भी ऐसे ही परोपकारी हुए हैं, उन्होंने कबूतर के प्राणों की रक्षा के लिए भूखे बाज को अपने शरीर का मांस काट-काट कर दे दिया था। “सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया के पीछे भी परोपकार की भावना ही प्रतिफल है। हमें “स्व” की संकुचित भावना से ऊपर उठा कर “पर” के निमित्त बलिदान करने को प्रेरित करता है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की हमे परोपकार करने की निम्नलिखित शब्दों में प्रेरणा दे रहे है वो इस प्रकार है। “यही पशु प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे। वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।” हम भी छोटे-छोटे कार्य करके अनेक प्रकार परोपकार कर सकते हैं। भूखे को रोटी खिलाकर, भूले-भटके को राह बतला कर, अशिक्षितों को शिक्षा देकर, अन्धे व्यक्ति को सड़क पार करा कर, प्यासे को पानी पिला कर, अबलाओं तथा कमजोरों की रक्षा करके तथा धर्मशालाए आदि बनवाकर परोपकार किया जा सकता है। परोपकार की महिमा अपरम्पार है। परोपकार से आत्मिक व मानसिक शान्ति मिलती है। परोपकारी मनुष्य मर कर भी अमर रहते हैं। परोपकार के द्वारा सुख, शान्ति, स्नेह, सहानुभूति आदि गुणों से मानव-जीवन परिपूर्ण हो सकता है। सच्चा परोपकार वही है जो कर्त्तव्य समझकर किया गया हो। अतः परोपकार ही मानव का सबसे बड़ा धर्म है। इस प्रकार परोपकार का हमारे जीवन में अत्यन्त महत्तव है। जिसका आचरण हमें करते रहना चाहिए।