purnima ki raat ka varnan karte hue ek swarachit kavita likhiye
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देखती हु जब चाँद की चाँदनी,दिल करता है चले जाऊ तुम्हारे पास।
तुम्हारी चाँदनी जब मुझे छूती हैं,दिल करता है कास ज़िन्दगी भर रहते तुम मेरे साथ।
तेरे दामन में वो दाग ना जाने किसने लगाया।
ना जाने इस दुनिया में तुझे चरित्रहीन किसने बताया।
बिन कहे बहुत कुछ बयाँ करती है तेरी ख़ामोशी।
ना जाने कौन चुरा ले गया तेरे चेहरे की ख़ुशी।
ना जाने वो दिन कब आयेगा?
जब तू मेरे पास आयेगा।
तेरी रौशनी से जीती हु मैं,कास ये तुझे पता चल जाये।
काश ये पूर्णिमा की रात कभी न जाये।
मैं जाती हु छत से,सुबह तक तुम भी चले जाते हो।
मैं आती हु छत में तो तुम क्यू नई आते हो?
हमेशा करती हु इंतज़ार इस दिन का,जिसमे तेरी रौशनी मुझ पर पड़ती है।
ए पूर्णिमा की चाँद तुझपे एक लड़की मरती है।
i just written it by my self..i hope you will like it..
तुम्हारी चाँदनी जब मुझे छूती हैं,दिल करता है कास ज़िन्दगी भर रहते तुम मेरे साथ।
तेरे दामन में वो दाग ना जाने किसने लगाया।
ना जाने इस दुनिया में तुझे चरित्रहीन किसने बताया।
बिन कहे बहुत कुछ बयाँ करती है तेरी ख़ामोशी।
ना जाने कौन चुरा ले गया तेरे चेहरे की ख़ुशी।
ना जाने वो दिन कब आयेगा?
जब तू मेरे पास आयेगा।
तेरी रौशनी से जीती हु मैं,कास ये तुझे पता चल जाये।
काश ये पूर्णिमा की रात कभी न जाये।
मैं जाती हु छत से,सुबह तक तुम भी चले जाते हो।
मैं आती हु छत में तो तुम क्यू नई आते हो?
हमेशा करती हु इंतज़ार इस दिन का,जिसमे तेरी रौशनी मुझ पर पड़ती है।
ए पूर्णिमा की चाँद तुझपे एक लड़की मरती है।
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