pursakar jaishanker ki kahani ki mol smvedna
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पुरुस्कार कहानी हिंदी के प्रसिद्ध लेखक ‘जयशंकर प्रसाद’ द्वारा लिखित कहानी है।
कहानी की मुख्य पात्र एक तरुण आयु की कन्या ‘मधुलिका’ है। जो कोशल राज्य के ही एक वीर सैनिक सिहंमित्र की पुत्री है। सिंहमित्र ने पूर्व समय में अपनी वीरता से कोशल राज्य के सम्मान की रक्षा की थी।
कहानी का आरंभ उस दृश्य के साथ होता है जब कोशल नरेश राज्य की परंपरा के निर्वाह के लिये हर वर्ष इन्द्र की पूजा होती थी। ये एक कृषि उत्सव था जिसमें राजा अपने राज्य के किसी किसान की भूमि का अधिग्रहण कर उसमें एक दिन का कृषि कार्य करता और उत्सव के अन्य आयोजन संपन्न करता था। इस बार मधूलिका का खेत राजा ने अधिग्रहण किया था। राजा पुरुस्कार स्वरूप मधुलिका बहुत बड़ी धनराशि देनी चाही वो पर वो पुरुस्कार लेने से मना कर देती है, और कहती है कि वो अपने खेत का सौदा नही करेगी। राजा के कहने पर और अन्य लोगों के समझाने पर भी वो नही मानती। इस उत्सव में आसपास से राज्यों से भी राजा-राजकुमार आदि अतिथि रूप में आते थे। मगध का राजकुमार अरुण भी वहाँ आया हुआ था और वो ये घटना देख रहा था।
उत्सव संपन्न हो जाता है, मधुलिका पुरुस्कार नही लेती है, राजकुमार अरुण ये मधुलिका से प्रभावित होता है। वो रात में मधुलिका की कुटिया में उससे मिलने आता है, उससे प्रणय निवेदन करता है। वो कहता है कि वो उसकी सहचरी बन जाये। वो कोशल नरेश से कहकर उसका खेत वापस दिलवा देगा। पर मधुलिका उसके आग्रह को ठुकरा देती है, वो वापस लौट जाता है।
मधुलिका फिर अपने खेत नही जाती और दूसरे खेतों में काम करके किसी तरह अपना जीवन-यापन करती है। यूं ही तीन वर्ष बीत जाते हैं। अब मधुलिका अपनी आर्थिक विपन्नता से व्यथित हो चुकी है, उसे राजकुमार अरुण की भी याद आती है। एक रात संयोग से राजकुमार स्वयं उसकी कुटिया में शरणार्थी के रूप में आ जाता है। वो बताता है कि उसने अपने राज्य में विद्रोह कर दिया है और अपने राज्य से निष्काषित कर दिया गया है। मधुलिका भी उससे प्रेम कर बैठती है और उसकी बातों में आ जाती है। अरुण मधुलिका को इस बात के लिये राजी कर लेता है कि वो कोशल नरेश से अपने खेत के बदले में किले के पास वाली भूमि मांग ले। चूंकि वो भूमि किले के पास है अतः वहाँ से अरुण अपने साथी सैनिकों के साथ किले पर आसानी से हमला कर सकता है। वो मधुलिका को लोभ देता है कि वो कोशल पर कब्जा कर अपना शासन स्थापित कर लेगा और उसे अपनी रानी बनायेगा। मधुलिका भी प्रेम में थी इसलिये उसे भी रानी बनने का लोभ हो जाता है। वो कोशल नरेश के पास जाकर किले के नाले के पास वाली भूमि मांग लेती है। अरुण भूमि पाकर खुश होता है वो कोशल पर छुपकर आक्रमण करने की तैयारी करने लगता है।
पर मधूलिका का मन अशांत है वो सोचती है कि वो क्या करने जा रही है। कहाँ उसने अपनी ईमानदारी और सम्मान की खातिर अपने खेत के बदले राजा से पुरुस्कार तक नही लिया, और अब वो राज्य के एक शत्रु को पनाह देने के लिए राजा की दी भूमि का उपयोग कर रही है। उसके पिता ने राज्य की रक्षा के लिये अपने प्राण दे दिये और वो राज्य के साथ विश्वासघात कर रही है। उसकी अन्तरात्मा उसे धिक्कारती है और वो राजा को सारी बाते बता देती है कि पड़ोसी राज्य मगध का विद्रोही राजकुमार अरुण कोशल पर आ्क्रमण करने की योजना बना रहा है। राजा शीघ्र ही अरुण को पकड़ लेता है। उसे मृत्युदंड दिया जाता है। राजा मधुलिका की प्रशंसा करते हुये उसे पुरुस्कार मांगने को कहता है तो मधुलिका स्वयं के लिये भी मृत्युदंड का मांग करते हुये अरुण के पास खड़ी हो जाती है।
Answer:
=> यह अजीब संयोग है कि काशी में उन दिनों हिंदी के तीन दिग्गज साहित्यकार मौजूद थे और तीनों चिंतन और लेखन के स्तर पर समय और समाज के यथार्थ को अलग अलग ढंग से अभिव्यक्त कर रहे थे।
=> जयशंकर प्रसाद प्रेमचंद और रामचंद्र शुक्ल एक ही देश और काल में रचना रखते जयशंकर प्रसाद कविता और कहानी दोनो ही मोर्चे पर एक साथ सक्रिय थे।
=> प्रसाद की आरंभिक कहानियों का संकलन सन 1912 में ‘ छाया ‘ नाम से प्रकाशित हुआ था। जबकी अंतिम कहानी संग्रह ‘ इंद्रजाल ‘ उनके निधन के 1 वर्ष पहले सन 1936 में प्रकाशित हुआ था।
=> उनके समकालीन प्रेमचंद के लेखन में तत्कालीन सामाजिक राजनीतिक हलचलों की जैसी मुखर अभिव्यक्ति मिलती है वैसी प्रसाद के यहां नहीं है।
=> प्रसाद भारत की गरिमा और गौरव का बखान सांस्कृतिक , ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में कर रहे थे। इस तरह वह अंग्रेजों की पराधीनता से उपजी भारतीय जनता की हताशा और पीड़ा को अतीत के गौरवान से फैलाना चाहते थे।
=> बरसा दे जिस समय कहानियां लिख रहे थे वह स्वाधीनता आंदोलन में उत्कर्ष का काल था।
=> प्रसाद ने मुक्ति चेतना को इतिहास से जोड़कर अपनी रचनाओं में अभिव्यक्त किया है।
=> उन्होंने ऐतिहासिक पात्रों के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना को व्यक्त करने का प्रयास किया है।
=> ‘पुरस्कार’ उनकी ऐसी ही रचना है जिसमें प्रेम और मुक्ति चेतना का विकास लक्षित किया जा सकता है।
=> राजा द्वारा मधुलिका की कृषि भूमि अधिग्रहित कर लेने पर भी वह पुरस्कार नहीं लेती क्योंकि वह उसकी पैतृक संपत्ति थी जिसे बेचना वह अपराध समझती थी।
=> स्वर्ण मुद्राओं को अस्वीकार और जीवन यापन के लिए कठिन श्रम उसकी देशभक्ति और ईमानदारी का प्रमाण है।
=> राष्ट्रीय प्रेम एवं मुक्ति चेतना का एक अन्यतम उदाहरण और है जहां कौशल पर कब्जे की योजना बनाते अरुण का रहस्य व राज्य सैनिकों के सामने उद्घाटित करती है , और पुरस्कार स्वरूप खुद को प्राणदंड के लिए प्रस्तुत कर देती है। क्योंकि राजा ने अरुण को प्राण दंड देने का आदेश दिया था और मधुलिका अरुण से प्रेम करती थी।
=> कितने ग्रहण अंतर्द्वंद उसे मधुलिका को गुजरना पड़ा होगा एक तरफ मातृभूमि की रक्षा का सवाल और दूसरी और प्रेम का लहराता समुद्र।
=> परंतु मधुलिका ने जिस बुद्धिमानी का परिचय दिया उसे देश और प्रेम दोनों के प्रति ईमानदारी पर संदेह नहीं किया जा सकता।
=> पुरस्कार के रुप में प्राणदंड की मांग और अरुण के साथ खड़ा हो जाना प्रेम की पराकाष्ठा का प्रमाण है।
=> राष्ट्रीय आंदोलन में आदर्श और नैतिकता का जो भाव प्रबल था वह प्रसाद और प्रेमचंद दोनों के कथा साहित्य में मिलता है।
=> प्रसाद ने इतिहास पुराण और संस्कृति का उपयोग अपनी युगीन आवश्यकताओं के संदर्भ में जनता की इच्छा आकांक्षाओं को स्वर देने के लिए ही किया है।
=> मूल संवेदना उस क्षेत्र से मिलती है जहां कर्तव्य एवं निष्ठा का निर्वाह किया गया हो।