pusp ki abhilasha poem
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चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँधा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में,
बिंध प्यारी को ललचाऊँ;
चाह नहीं सम्राटों के शव,
पर, हे हरि, डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के शिर पर,
चढ़ूँ, भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना वनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने,
जिस पथ जाएँ वीर अनेक ।
-माखनलाल चतुर्वेदी
गहनों में गूँधा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में,
बिंध प्यारी को ललचाऊँ;
चाह नहीं सम्राटों के शव,
पर, हे हरि, डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के शिर पर,
चढ़ूँ, भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना वनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने,
जिस पथ जाएँ वीर अनेक ।
-माखनलाल चतुर्वेदी
Aditya72779:
thnkxxx
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पुष्प की अभिलाषा
चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ,
चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ।
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जावें वीर अनेक
- माखनलाल चतुर्वेदी
काव्यपाठ: विनोद तिवारी
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