pusp ki abilasha summary
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चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक!
पुष्प की अभिलाषा कविता का अर्थ
इस कविता द्वारा माकन लाल जी ने यह बताने की कोशिश की हैं कि जब कभी माली अपने बगीचे से फूल तोड़ने जाता है तो जब माली फूल से पूछता है कि तुम कहाँ जाना चाहते हो? माला बनना चाहते हो या भगवान के चरणों में चढ़ाया जाना चाहते हो तो इस पर फूल कहता है –
मेरी इच्छा ये नहीं कि मैं किसी सूंदर स्त्री के बालों का गजरा बनूँ
मुझे चाह नहीं कि मैं दो प्रेमियों के लिए माला बनूँ
मुझे ये भी चाह नहीं कि किसी राजा के शव पे मुझे चढ़ाया जाये
मुझे चाह नहीं कि मुझे भगवान पर चढ़ाया जाये और मैं अपने आपको भागयशाली मानूं
हे वनमाली तुम मुझे तोड़कर उस राह में फेंक देना जहाँ शूरवीर मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना शीश चढाने जा रहे हों। मैं उन शूरवीरों के पैरों तले आकर खुद पर गर्व महसूस करूँगा।