Pustak hamara sacha mitra 50 words
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पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र पर निबन्ध
कुछ पुस्तकें केवल जायका लेने के लिये होती हैं, कुछ निगलने के लिये होती है तथा कुछ थोड़ी सी चबाने तथा मन में उतारने के लिये होती हैं । मानवता का सही अध्ययन पुस्तकें ही प्रस्तुत करती हैं । पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र हैं आज भी और सदा के लिये भी ।
पुस्तकें हमारे लिए एक ऐसे संसार का सृजन करती हैं । जो इस वास्तविक संसार से अलग है । वास्तविक संसार दु:ख और कष्टों से भरा पड़ा है । स्वार्थ, द्वेष और शत्रुता की इस दुनिया में आनन्द और खुशी का काफी सीमा तक अभाव रहता है ।
कोई किसी से शत्रुता और द्वेष की भावना रखकर उसे हानि पहुँचा रहा है । कोई दूसरों के हितों का बलिदान करके अपने स्वार्थ की पूर्ति में लगा है । संवेदनशील पुरुष के लिए यह जीवन पीड़ाओं से परिपूर्ण है । सच्चे सुख के लिए हमें पुस्तकों के संसार में जाना होगा ।
धर्म और आध्यात्म का मार्ग कठिन है । लोग धर्म का नाम तो लेते हैं किन्तु धर्म के बारे में कुछ नहीं जानते । ईश्वर की चर्चा होती है किन्तु हमें न ईश्वर का पता है न ही उसके स्वरूप का । वेद और शास्त्र पढ़ कर हम धर्म और ईश्वर के बारे में जान सकते हैं ।
हमारे धर्म और आध्यात्म के अधिकारियों और ऋषियों ने न केवल धर्म और ईश्वर के बारे में लिखा अपितु उनके बारे में लिखा अपितु उनके बारे में जाना भी हैं। पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र हैं । वे हमारा कल्याण करती हैं । हमें आनन्द देती हैं ।
कुछ पुस्तकें केवल जायका लेने के लिये होती हैं, कुछ निगलने के लिये होती है तथा कुछ थोड़ी सी चबाने तथा मन में उतारने के लिये होती हैं । मानवता का सही अध्ययन पुस्तकें ही प्रस्तुत करती हैं । पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र हैं आज भी और सदा के लिये भी ।
पुस्तकें हमारे लिए एक ऐसे संसार का सृजन करती हैं । जो इस वास्तविक संसार से अलग है । वास्तविक संसार दु:ख और कष्टों से भरा पड़ा है । स्वार्थ, द्वेष और शत्रुता की इस दुनिया में आनन्द और खुशी का काफी सीमा तक अभाव रहता है ।
कोई किसी से शत्रुता और द्वेष की भावना रखकर उसे हानि पहुँचा रहा है । कोई दूसरों के हितों का बलिदान करके अपने स्वार्थ की पूर्ति में लगा है । संवेदनशील पुरुष के लिए यह जीवन पीड़ाओं से परिपूर्ण है । सच्चे सुख के लिए हमें पुस्तकों के संसार में जाना होगा ।
धर्म और आध्यात्म का मार्ग कठिन है । लोग धर्म का नाम तो लेते हैं किन्तु धर्म के बारे में कुछ नहीं जानते । ईश्वर की चर्चा होती है किन्तु हमें न ईश्वर का पता है न ही उसके स्वरूप का । वेद और शास्त्र पढ़ कर हम धर्म और ईश्वर के बारे में जान सकते हैं ।
हमारे धर्म और आध्यात्म के अधिकारियों और ऋषियों ने न केवल धर्म और ईश्वर के बारे में लिखा अपितु उनके बारे में लिखा अपितु उनके बारे में जाना भी हैं। पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र हैं । वे हमारा कल्याण करती हैं । हमें आनन्द देती हैं ।
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