Pustaka samiksha how to write
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ज़िंदगी की गुल्लक (क़िस्से कविताओं के), जैसा कि इस किताब का नाम है, बिल्कुल उसी तरह इसे बनाया गया है. इसे कविता संग्रह कहना इसलिए उचित नहीं होगा कि इसमें कविताएं तो हैं, पर वे अपनी कहानियों के साथ हैं. 21 कविताओं वाली इस किताब में मनीषा ने हर कविता के साथ, कविता से भी बड़ा एक ऐसा डिस्क्रिप्शन दिया है, जो उस कविता के जन्म लेने की कहानी है या फिर उस कविता में आए जज़्बात की ज़मीन है. यह किताब किसी डायरी की तरह प्रतीत होती है, जो आपको मनीषा के जीवन और उनकी सोच के भीतर झांकने का मौक़ा देती है. इस लिहाज से पुस्तक का नाम सही प्रतीत होता है कि यह उनके अनुभवों की गुल्लक है. जीवन और उसके अनुभव से जुड़ी ये कविताएं और इनकी कहानी रुचिकर हैं, पर वे आपके दिलो-दिमाग़ पर गहरी छाप छोड़ जाती हों, ऐसा नहीं होता. हां, इस किताब को पढ़ते हुए आप अपनी ज़िंदगी के किसी बीते हुए लम्हे में ज़रूर पहुंच जाते हैं और उन्हें याद करने लगते हैं, जो पुस्तक को सार्थक बना देता है. पुस्तक की लेखिका ने ख़ुद भी स्पष्ट किया है कि ये उनके अंदर की वह आवाज़ है, जिसे उन्होंने अपनी डायरी में दबा रखा था. असमंजस, मां और टुकड़े इन तीन कविताओं के भाव अच्छे बन पड़े हैं. यह बात भी सच है कि कविता में कहानी और कहानी में कविता के रूप में यह एक अभिनव प्रयोग है. यदि आप एक नए प्रयोग के रूप में इस पुस्तक को पढ़ना चाहेंगे तो निराशा नहीं होगी.