Hindi, asked by abhi78504, 1 year ago

pustakalaya ka mahatva in hindhi​

Answers

Answered by jannat1410
6

Answer:

spelling of Hindi is wrong

Answered by chikki52
3

Answer:

सृष्टि के समस्त चराचरों में मनुश्य ही सर्वोत्कृष्ट कहलाने का गौरव प्राप्त करता है। मनुष्य ही चिंतन-मनन कर सकता है। अच्छे-बुरे का निर्णय कर सकता है तथा अपने छोटे से जीवन में बहुत कुछ सीखना चाहता है। उसी जिज्ञासावृत पुस्तकें शंात करती है अर्थात ज्ञान का भंडार पुस्तकों में समाहित है।

ऐसा स्थान जहां अनेक पुस्तरों को संगृहीत करके उनका एक विशाल भंडार बनाया जाता है। पुस्तकालय कहलाता है। पुस्तकालय ज्ञान के वे मंदिर हैं जो मानव इच्छा को शांत करते हैं, उसे विभिन्न विषयों पर नई जानकारियां उपलब्ध करते हैं, ज्ञान के संचित कोश से उसे निश्चित करते हैं। अतीत झरोखों की झलक दिखाते हैं तथा उसके बौद्धिक स्तर को उन्नत करते हैं।

दुनियां में विषय अनंत हैं उन विषयों से संबंधित पुस्तकें भी अनंत हैं। उन सभी पुस्तकों को खरीद कर पढ़ पाना किसी के बस की बात नहीं। इस आवश्यकता की पूर्ति पुस्तकालय अत्यंत सुगमता से कर सकता है। बड़े-बड़े पुस्तकालयों में लाखों पुस्तकें संगृहीत होती हैं। इनमें वे दुलर्भ पुस्तकें भी होती हैं जो अब अप्राप्य हैं जिन्हें किसी भी कीमत पर खरीदा नहीं जा सकता।

पुस्तकालय में बैठकर कोई भी व्यक्ति एक ही विषय पर अनेक व्यक्तियों के विचारों से परिचित हो सकता है। अन्य विषयों के साथ अपने विषय का तुलनात्मक अध्ययन भी कर सकता है। अनगिनत पुस्तकों वाले अधिकांश पुस्तकालय पूरी तरह व्यवस्थित होते हैं। विद्यार्थी कछ देर में ही अपनी जरूरत की पुस्तक पा सकता है।

पुस्तकालय में जाते समय उसके नियमों की जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। वहां जाकर वही पुस्तकें पढऩी चाहिए जिनकी आपको जरूरत हो। पुस्तकालय में ऐसी अनेक पुस्तकें होती हैं। यदि विद्यार्थी पुस्तकालय में केवल किस्से कहानियों की किताबें पढक़र अपना समय बर्बाद करने के लिए जाते हो तो सदुपयोग करना चाहिए तथा पुस्तालय में बैठकर शांत वातावरण में एकाग्रचित होकर अध्ययन करना चाहिए। पुस्तकालय में बैठकर पुस्तकें पढ़ते समय बिल्कुल शांत रहना चाहिए। पुस्तकालय की पुस्तकों पर पेंसिल या पेन से निशान लगाना, उनके चित्रों आदि को फाडऩा या गंदा करना ठीक नहीं है। वहां बैठकर हमें औरों का भी ध्यान रखना चाहिए। हमें कोई ऐसा आचरण नहीं करना चाहिए जिससे दूसरों को असुविधा हो। पुस्तकालय किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं इसलिए वहां सगृहीत पुस्तकें सामाजिक संपति होती हैं अत: हमें पुस्तकालय की पुस्तकों को उसी दृष्टि से देखना चाहिए।

पुस्तकालयों में संकलित पुस्तकों के माध्यम से व्यक्ति भाव-विचार, भाषा, ज्ञान-विज्ञान आदि सभी विषयों के क्रमिक विकास का इतिहास जानकार उनका किसी भी विशिष्ट दृश्टि से अध्ययन कर सकता है। अपने प्रिय महापुरुष, राजनेता, कवि, साहित्यकार आदि के जीवन और विचारों से कोई व्यक्ति सहज ही साक्षात्कार संभव हो जाता है। जातियों, राष्ट्रों, धर्मों आदि के उत्थान-पतन का इतिहास भी पुस्तकों से जानकर उत्थान और पतन के कारणों को अपनाया या उनसे बचा जा सकता है।

पुस्तकालय ज्ञान-विज्ञान के अनंत भंडार होते हैं। उन्हें अपने भीतर समाए रहने वाला अनंत नदी-धारों, विचार-रत्नों, भाव-विचार-प्राणियों का अनंत सागर एंव निधि कहा जा सकता है। जैसे ज्ञान-विज्ञान के कई तरह के साधन पाकर भी सागर की अथाह गहराई एंव अछोर स्वरूपाकार को सही रूप से नाप-तोल संभव नहीं हुआ करता, उसी प्रकार पुस्तकालयों में संचित अथाह ज्ञान-विज्ञान, विचारों-भावों आदि को खंगाल पाना भी नितांत असंभव हुआ करता है। जैसे अनंत नदियों का प्रवाह नित्य प्रति सागर में मिलते रहकर उसे भरित बनाए रखता है वैसे ही नित्य नई-नई पुस्तकें भी प्रकाशित होकर पुस्तकालयों को भरा-पूरा किए रहती हैं। यही उनका महत्व एंव गौरव है।

Similar questions
Math, 6 months ago