Puy-UL.
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सन् 1908 ई. की बात है। दिसंबर का आखीर या जनवरी का प्रारंभ होगा। चिल्ला'
जाड़ा पड़ रहा था। दो-चार दिन पूर्व कुछ बूंदा-बांदी हो गई थी, इसलिए शीत की
भयंकरता और भी बढ़ गई थी। सायंकाल के साढ़े तीन या चार बजे होंगे। कई साथियों
के साथ मैं झरबेरी के बेर तोड़-तोड़कर खा रहा था कि गाँव के पास से एक आदमी
ने ज़ोर से पुकारा कि तुम्हारे भाई बुला रहे हैं, शीघ्र ही घर लौट जाओ। मैं घर को
चलने लगा। साथ में छोटा भाई भी था। भाई साहब की मार का डर था इसलिए सहमा
हुआ चला जाता था। समझ में नहीं आता था कि कौन-सा कसूर बन पड़ा। डरते-डरते
था। बच्चे नटखट होते ही हैं। मक्खनपुर पढ़ने जाने वाली हमारी टोली पूरी बानर
टोली थी। एक दिन हम लोग स्कूल से लौट रहे थे कि हमको कुएँ में उझकने की
सूझी। सबसे पहले उझकने वाला मैं ही था। कुएँ में झाँककर एक ढेला फेंका कि
उसकी आवाज़ कैसी होती है। उसके सुनने के बाद अपनी बोली की प्रतिध्वनि
सुनने की इच्छा थी, पर कुएँ में ज्योंही ढेला गिरा, त्योंही एक फुसकार सुनाई पड़ी।
प्रश्न:
1) भाई के बुलाने पर घर लौटते समय लेखक के मन में किस बात का डर था?
2) मख्कनपुर पढने जाने वाली बच्चों की टोली रास्ते में पड़ने वाले कुएँ में ढेला क्यों फेंकती थी?
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Answer:
1.लेखक को डर लग रहा था को पता नहीं कौन सा कुसूर बन पड़ा और बड़े भाई से पिटाई का भी डर था
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