Q.1. निम्नलिखित पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए : 21 (क) "जात ले जात, टके सेर जात। एक टका दो, हम अभी अपनी जात बेचते हैं। टके के वास्ते ब्राह्मण से धोबी हो जायें और धोबी को ब्राह्मण कर दें, टके के वास्ते जैसी कहो वैसी व्यवस्था दें। टके के वास्ते झूठ को सच करें। टके के वास्ते ब्राह्मण से मुसलमान, टके के वास्ते हिन्दू से क्रिस्तान। टके के वास्ते धर्म और प्रतिष्ठा दोनों बेचें, टके के वास्ते झूठी गवाही दें। टके के वास्ते पाप को JN-54 P.T.O.
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jate le jat take ser jat ek tokada ham bhi apni zaat bechte hai
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दी गई पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या :
- संदर्भ : ये पंक्तियां अंधेर नगरी चौपट राजा टके सेर भाजी, टके सेर खाजा इस पाठ से ली गई है। इस पाठ के लेखक है भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी।
- प्रसंग : अंधेर नगरी में राजा मूर्ख था। उसके राज्य में कुछ भी व्यवस्थित ढंग से नहीं होता था। वह किसी अपराध की सजा किसी को भी से देता था, अंधेर नगरी में निर्दोष को भी फांसी लगाई जाती थी।
- व्याख्या : अंधेर नगरी के बाजार में सभी वस्तुएं, जरूरत का सामान टके में मिलता था। जूतेवाला टके में जूते बेचता था।
- एक ब्राह्मण था , वह बाजार में टके में जात बदलकर दे रहा था। वह कह रहा था कि टके में जाट बदल को। एक टके के बदले ब्राह्मण से मुसलमान बन जाओ। टके में पाप को पुण्य में बदलो। एक टका देकर ब्राह्मण से धोबी बन जाओ। मान प्रतिष्ठा , धर्म एक टके के लिए बेच सकते है। एक टके में हिन्दू से कृश्चन बन जाओ।एक टका लेकर झूठी गवाही दे सकते है।
#SPJ3
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