Hindi, asked by Kusumagarwal51106, 10 months ago

Q. कैसी हो शिक्षा' विषय पर 100-150 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए-​

Answers

Answered by pujapk909090
15

Explanation:

शिक्षा का लक्ष्य विद्यार्थियों के अंदर अच्छे संस्कार पैदा करना तथा उन्हें आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाना है। स्कूल में दाखिला लेने के बाद एक विद्यार्थी अपने स्कूल की पुस्तकों से, शिक्षकों से, स्कूल के वातावरण तथा सहपाठियों से बहुत कुछ सीखता है।

शिक्षा का उद्देश्य दूसरों पर विचार थोपना या मतारोपण करना नहीं है और न ही शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य को किसी प्रकार का आदेश देना है। शिक्षा का लक्ष्य किसी प्रकार का कष्ट अथवा दण्ड भी नहीं होना चाहिए। जब शिक्षा दण्ड बन जाती है तो छात्रों में अनुशासनहीनता पैदा होती है, जिसके फलस्वरूप छात्र आन्दोलन तथा हडतालें आदि करते हैं।शिक्षा की आवश्यकता आज समाज के प्रत्येक वर्ग के व्यक्ति को है। सम्पन्न प्रकार की जातियाँ शिक्षा का उपयोग अपनी उन्नति और खुशहाली के लिए करती आई हैं। जबकि विपन्न या निचले स्तर की जातियों को उच्च क्षेणी के समाज ने शिक्षा-दीक्षा के क्षेत्र में ज्यादा आगे बढ़ने ही नहीं दिया। निम्न जातियों को हमेशा दबाकर रखा गया उन पर भाँति-भाँति के अत्याचार किए गए।

जब व्यक्ति पढ़-लिखकर साक्षर हो जाता है तो वह अपने ऊपर और अपने जाति के लोगों के ऊपर होने वाले अत्याचार का सामना तत्परता से करता है।

शिक्षा का मतलब ढेर सारी पुस्तकों का भार विद्यार्थियों के मस्तिष्क पर लाद देना नहीं है। बल्कि शिक्षा का अर्थ हरेक विद्यार्थी को बेहतर या श्रेष्ठ जीवन जीने योग्य बनाना है। इसलिए शिक्षा के सैद्धांतिक तत्त्वों के साथ व्यवहारिक तत्त्वों का भी योग होना चाहिए ताकि प्रत्येक विद्यार्थी अपने जीवन की मुश्किलों का बेहतर ढंग से सामना कर सके।

सही शिक्षा के अभाव में आज का युवक अपने जीवन के सही लक्ष्य से भटक गया है। वह अनेक प्रकार की बुरी आदतों और कुसंग का शिकार हो गया है।

समाज को बेहरत बनाने के लिए और राष्ट्र को उन्नति की ओर ले जाने के लिए आज शिक्षा की विशेष आवश्यकता है। वर्तमान समय में हमारे राष्ट्र और हमारे समाज की स्थिति-परिस्थितियाँ संतोषजनक नहीं हैं। हमारा राष्ट्र आर्थिक दुर्बलता के दौर से गुजर रहा है, जबकि हमारे समाज में नित नई विघटनकारी शक्तियाँ पैदा होकर समाज को खोखला बना रही हैं। अशिक्षा के कारण लोग अंधविश्वास और भ्रम का शिकार हो रहे हैं। असामाजिक तत्त्व भले लोगों को बहका-फुसलाकर उन्हें तोड़-फोड़ और हिंसा के लिए उत्तेजित करते हैं। सही शिक्षा-ज्ञान के अभाव में राजनैतिक लोग विद्यर्थियों का अथवा यात्रा शक्ति का अपने स्वार्थों के लिए उपयोग करते हैं।

अनपढ़ व्यक्ति की आज के पढ़े-लिखे समाज में कोई कीमत नहीं है। पढ़-लिखकर ही व्यक्ति समाज के बीच बैठने योग्य बनता है तथा सभ्य कहलाता है। आदिम समाज शिक्षा नहीं थी इसलिए उस समय का आदमी जंगली कहलाता था। वह वनमानुष और जंगली जानवरों की तरह जंगलों में नंगा घूमता-फिरता था। आज भी कुछ आदिवासी प्रकार की जाति, शिक्षा-ज्ञान के अभाव में इसी प्रकार की कहीं-कहीं देखी जाती हैं।

शनैः-शनैः व्यक्ति ने आग जलाना, कपड़े पहनना सीखा। लिपि का अविष्कारक तो बहुत बाद में हुआ। मुद्रणकला के अविष्कार से मानव के बौद्धिक जगत में एक नई प्रकार की क्रांति, एक नई प्रकार की जाग्रति आई।

समाज-सुधार के लिए अथवा बिगड़े हुए मनुष्यों के लिए आज शिक्षा की बहुत जरूरत है। शिक्षा मानव को ये संस्कार प्रदान करती है। वह मनुष्य को उसके लक्ष्य तक पहुँचाने में सहायक बनती है। शिक्षा मनुष्य की जीवन-साथी की तरह है जिसकी आवश्यकता मनुष्य को पग-पग पर पड़ती है। वह श्रेष्ठ गुरु की तरह मनुष्य के जीवन को आलोकित कर उसे मार्गदर्शन प्रदान करती है।

Answered by sandeepk081992
5

Answer:

शिक्षा का लक्ष्य विद्यार्थियों के अंदर अच्छे संस्कार पैदा करना तथा उन्हें आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाना है। स्कूल में दाखिला लेने के बाद एक विद्यार्थी अपने स्कूल की पुस्तकों से, शिक्षकों से, स्कूल के वातावरण तथा सहपाठियों से बहुत कुछ सीखता है।

शिक्षा का उद्देश्य दूसरों पर विचार थोपना या मतारोपण करना नहीं है और न ही शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य को किसी प्रकार का आदेश देना है। शिक्षा का लक्ष्य किसी प्रकार का कष्ट अथवा दण्ड भी नहीं होना चाहिए। जब शिक्षा दण्ड बन जाती है तो छात्रों में अनुशासनहीनता पैदा होती है, जिसके फलस्वरूप छात्र आन्दोलन तथा हडतालें आदि करते हैं।शिक्षा की आवश्यकता आज समाज के प्रत्येक वर्ग के व्यक्ति को है। सम्पन्न प्रकार की जातियाँ शिक्षा का उपयोग अपनी उन्नति और खुशहाली के लिए करती आई हैं। जबकि विपन्न या निचले स्तर की जातियों को उच्च क्षेणी के समाज ने शिक्षा-दीक्षा के क्षेत्र में ज्यादा आगे बढ़ने ही नहीं दिया। निम्न जातियों को हमेशा दबाकर रखा गया उन पर भाँति-भाँति के अत्याचार किए गए।

जब व्यक्ति पढ़-लिखकर साक्षर हो जाता है तो वह अपने ऊपर और अपने जाति के लोगों के ऊपर होने वाले अत्याचार का सामना तत्परता से करता है।

शिक्षा का मतलब ढेर सारी पुस्तकों का भार विद्यार्थियों के मस्तिष्क पर लाद देना नहीं है। बल्कि शिक्षा का अर्थ हरेक विद्यार्थी को बेहतर या श्रेष्ठ जीवन जीने योग्य बनाना है। इसलिए शिक्षा के सैद्धांतिक तत्त्वों के साथ व्यवहारिक तत्त्वों का भी योग होना चाहिए ताकि प्रत्येक विद्यार्थी अपने जीवन की मुश्किलों का बेहतर ढंग से सामना कर सके।

सही शिक्षा के अभाव में आज का युवक अपने जीवन के सही लक्ष्य से भटक गया है। वह अनेक प्रकार की बुरी आदतों और कुसंग का शिकार हो गया है।

समाज को बेहरत बनाने के लिए और राष्ट्र को उन्नति की ओर ले जाने के लिए आज शिक्षा की विशेष आवश्यकता है। वर्तमान समय में हमारे राष्ट्र और हमारे समाज की स्थिति-परिस्थितियाँ संतोषजनक नहीं हैं। हमारा राष्ट्र आर्थिक दुर्बलता के दौर से गुजर रहा है, जबकि हमारे समाज में नित नई विघटनकारी शक्तियाँ पैदा होकर समाज को खोखला बना रही हैं। अशिक्षा के कारण लोग अंधविश्वास और भ्रम का शिकार हो रहे हैं। असामाजिक तत्त्व भले लोगों को बहका-फुसलाकर उन्हें तोड़-फोड़ और हिंसा के लिए उत्तेजित करते हैं। सही शिक्षा-ज्ञान के अभाव में राजनैतिक लोग विद्यर्थियों का अथवा यात्रा शक्ति का अपने स्वार्थों के लिए उपयोग करते हैं।

अनपढ़ व्यक्ति की आज के पढ़े-लिखे समाज में कोई कीमत नहीं है। पढ़-लिखकर ही व्यक्ति समाज के बीच बैठने योग्य बनता है तथा सभ्य कहलाता है। आदिम समाज शिक्षा नहीं थी इसलिए उस समय का आदमी जंगली कहलाता था। वह वनमानुष और जंगली जानवरों की तरह जंगलों में नंगा घूमता-फिरता था। आज भी कुछ आदिवासी प्रकार की जाति, शिक्षा-ज्ञान के अभाव में इसी प्रकार की कहीं-कहीं देखी जाती हैं।

शनैः-शनैः व्यक्ति ने आग जलाना, कपड़े पहनना सीखा। लिपि का अविष्कारक तो बहुत बाद में हुआ। मुद्रणकला के अविष्कार से मानव के बौद्धिक जगत में एक नई प्रकार की क्रांति, एक नई प्रकार की जाग्रति आई।

समाज-सुधार के लिए अथवा बिगड़े हुए मनुष्यों के लिए आज शिक्षा की बहुत जरूरत है। शिक्षा मानव को ये संस्कार प्रदान करती है। वह मनुष्य को उसके लक्ष्य तक पहुँचाने में सहायक बनती है। शिक्षा मनुष्य की जीवन-साथी की तरह है जिसकी आवश्यकता मनुष्य को पग-पग पर पड़ती है। वह श्रेष्ठ गुरु की तरह मनुष्य के जीवन को आलोकित कर उसे मार्गदर्शन प्रदान करती है।

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