Social Sciences, asked by Watichanra542, 4 months ago

Q201 ( 1 ) जब हम B से A तक एल्यूमीनियम की छड़ से गुजारते हैं तो हम
(a) रॉड विस्थापित नहीं है।
(b) रॉड दाईं ओर विस्थापित है।
(c) छड़ को बाईं ओर विस्थापित किया जाता है।
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं।​

Answers

Answered by rajkumarkus1999
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Explanation:

अगर आप कमोडिटी बाजार के बारे में थोड़ा सा भी जानते हैं तो आपने सुमितोमो कॉपर स्कैंडल की कहानी जरूर सुनी होगी। इस स्कैंडल की शुरुआत करीब 1995 में हुई- जापान में। लेकिन यह स्कैंडल इतना बड़ा था कि दुनिया भर के कमोडिटी बाजारों और कमोडिटी ट्रेडिंग पर इसने असर डाला और आज तक इसके बारे में चर्चा होती है। इसे ट्रेडिंग को ठगी का एक नमूना माना जाता है।

सुमितोमो कॉरपोरेशन जापान की एक बहुत बड़ी कंपनी है, इसका मुख्यालय जापान में है और ये वहीं पर लिस्टेड है। इसका कारोबार दुनिया भर में है और ये कई तरह के कारोबार करती है। कंपनी तरह-तरह की वस्तुओं और कमोडिटी की ट्रेडिंग करती है। उन दिनों सुमितोमो में कॉपर ट्रेडिंग यानी तांबे की ट्रेडिंग का एक बहुत बड़ा विभाग था। कंपनी स्पॉट बाजार में कॉपर खरीदती थी और फिर उनको अपने भंडार गृहों में जमा कर के रखती थी, जिससे उसकी ट्रेडिंग कर सके। साथ ही, लंदन मेटल एक्सचेंज पर कॉपर के फ्यूचर्स में भी कंपनी काफी निवेश करती थी। सुमितोमो के मुख्य कॉपर ट्रेडर थे- यासुओ हमानाका। कॉपर यानी तांबे से जुड़ी किसी भी चीज के लिए सुमितोमो में उन्ही का नाम लिया जाता था।

तो उस घोटाले या स्कैंडल में क्या हुआ था-

यासुओ हमानाका ने स्पॉट बाजार में कॉपर खरीदा और उसको अपने भंडार गृहों में जमा कर लिया।

उन्होंने यह कॉपर केवल जापान में नहीं खरीदा बल्कि दुनियाभर के बाजारों में खरीदा और अलग-अलग जगहों पर उनको जमा करके रखा।

इसका मतलब है कि कॉपर के स्पॉट बाजार में वह लॉन्ग थे यानी खरीदारी कर रहे थे।

दुनियाभर के बाजारों में जितना कॉपर स्पॉट में खरीदा या बेचा जा रहा था उसका 5% सुमितोमो के पास था। उस समय इस दुनिया में यासुओ हमानाका से ज्यादा कॉपर किसी के पास नहीं था। इस तरह से वो एक ऐसी स्थिति में था जहां पर वह कॉपर की कीमतों को अपने हिसाब से कंट्रोल कर सकता था।

साथ ही, उसने लंदन मेटल एक्सचेंज यानी LME पर कॉपर फ्यूचर भी खरीद रखा था।

हर ट्रेडर को पता था कि यासुओ हमानाका कॉपर का सबसे बड़ा Bull (बुल) था, लेकिन कोई ये नहीं जानता था कि उसने कितना एक्स्पोज़र ले रखा है। (क्योंकि उस समय LME अपने ओपन इंटरेस्ट डाटा को पब्लिक में जारी नहीं करता था।)

जब भी कोई ट्रेडर या ट्रेडिंग कंपनी कॉपर को शॉर्ट करती थी तो हमानाका उसको खरीद लेता था। उसके लिए ऐसा करना आसान था क्योंकि सुमितोमो के पास काफी कैश था और कंपनी इस ट्रेड को फंड कर रही थी।

यासुओ हमानाका ने इतना बड़ी मात्रा में कॉपर खरीदा था कि कॉपर की कीमतें ऊपर चली गई।

याद रखें कि कॉपर एक इंटरनेशनल यानी अंतर्राष्ट्रीय कमोडिटी है और इसकी कीमतें बाजार तय करता है (LME फ्यूचर)।

तो LME पर कीमत ऊपर गई, शॉर्ट करने वाले ट्रेडर फंस गए और हमानाका ने फ्यूचर्स में काफी मुनाफा कमाया।

शॉर्ट करने वाले ट्रेडर को डिफॉल्ट करना पड़ा और उन्हें एक्सपायरी पर कॉपर की डिलीवरी देनी पड़ी।

ऐसे में, हर ट्रेडर को सुमितोमो से महंगी कीमत पर कॉपर खरीदना पड़ता था जिसका मतलब था कि सुमितोमो अपनी स्पॉट की पोजीशन पर भी बहुत सारे मुनाफा कमा रहा था।

यह मुनाफा इतना बढ़ता गया कि यासुओ हमानाका कॉपर का किंग बन गया।

यह सब एक दशक से ज्यादा ऐसे ही चलता रहा। लेकिन 90 के दशक के शुरुआत में चीन ने अपना कॉपर का उत्पादन बढ़ा दिया। वहां उत्पादन इतना ज्यादा होने लगा कि बाजार में हर तरफ कॉपर आसानी से मिलने लगा। इस वजह से, कॉपर की कीमतें नीचे आने लगी और हमानाका को मुश्किल होने लगी। उसके पास इतना माल था कि उसे बाजार में बेचना आसान नहीं था। आखिर बाजार में सब कुछ तो वह खुद ही खरीद रहा था। तब उसने अपनी लॉन्ग पोजीशन को बचाए रखने के लिए पैसे उधार पर लेने शुरू कर दिए। याद रखिए कि ये सारी पोजीशन लेवरेज वाली थी और जब आपके पास किसी लेवरेज पोजीशन की बहुत बड़ी मात्रा होती है, तो कीमत में छोटा सा बदलाव भी आपका बड़ा भारी नुकसान करा सकता है।

फिर एक दिन यही हुआ, कॉपर की कीमत जोर से गिरीं और यासुओ हमानाका का कॉपर साम्राज्य ध्वस्त हो गया। घाटा इतना बड़ा था कि सुमितोमो कॉरपोरेशन को दिवालियापन यानी बैंक्रप्टसी (bankruptcy) के लिए अर्जी देनी पड़ी। 1995 की कीमतों में कंपनी को करीब 5 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ।

इसके बाद वही हुआ जो आमतौर पर होता है। कुछ लोगों पर उंगलियां उठीं, कुछ मुकदमे हुए, कुछ सफाई दी गई और ड्रामा चलता रहा। लेकिन इस कहानी से सीख ये मिली कि रिस्क मैनेजमेंट कितना जरूरी होता है। इसके बारे में बात हम एक अलग मॉडयूल में करेंगे।

लेकिन अभी हम कॉपर से जुड़ी जरूरी जानकारी के लिए आगे बढ़ते हैं।

13.2 – कॉपर की जरूरी जानकारी

कॉपर यानी तांबा एक बेस मेटल है। MCX पर इसका अच्छा खासा कारोबार होता है। जो धातुएं सोने और चांदी की तरह महंगी धातु नहीं होती हैं उन्हें बेस मेटल कहा जाता है।

MCX पर कॉपर में हर दिन करीब ₹2,050 करोड़ रुपए का कारोबार होता है और करीब 55,000 लॉट्स बेचे और खरीदे जाते हैं। MCX पर कॉपर में काफी लिक्विडिटी होती है। यह लिक्विडिटी सोना या क्रूड ऑयल के बराबर होती है।

कॉपर एक बहुत ही जरूरी धातु है। खपत के मामले में, स्टील और एल्युमिनियम के बाद यह तीसरे नंबर की सबसे ज्यादा इसकी खपत वाली धातु है। एल्युमिनियम की तरह ही कॉपर की कीमत सीधे तौर पर दुनिया की आर्थिक हालत से जुड़ी होती है। आपको शायद पता हो कि कॉपर इलेक्ट्रिसिटी यानी बिजली का एक अच्छा कंडक्टर है और इसलिए कॉपर का इस्तेमाल बिजली के तार बनाने में होता है। शायद आपको यह भी पता हो कि टेस्ला की कार बनाने में कॉपर की मोटर का इस्तेमाल होता है।

इसके अलावा कॉपर का इस्तेमाल बहुत सारी चीजों में होता है, जैसे

बिल्डिंग और कंस्ट्रक्शन

कॉपर एलॉय मोल्ड

इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रॉनिक

प्लंबिंग

औद्योगिक उत्पादन

टेलीकॉम

रेलवे।

लेकिन मेरे लिए इसका सबसे महत्वपूर्ण उपयोग यह है-

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