Q3.
स्वामी विवेकानंद द्वारा लिखित भगवान बुद्ध निबंध के आधार पर स्पष्ट कीजिए भगवान बुद्ध का
चरित्र हमें क्या संदेश देता है?
Answers
Explanation:
भारत राष्ट्र के पुनरुत्थान के लिए क्या करना होगा? इसके लिए किस चीज की आवश्यकता है? क्या अधिक धन संग्रह करने से देश का उत्थान होगा? क्या बड़ी-बड़ी मिसाइल, शक्तिशाली बम और शस्त्रों से सज्ज सेना मात्र से देश का विकास होगा? क्या अनाथ बच्चों के लिए अधिकाधिक अनाथालय बनाने या असहाय-अभावग्रस्त वृद्धों के लिए अधिकाधिक वृद्धाश्रम बनाने से देश की समस्याओं का समाधान हो जाएगा? अथवा सभी देशवासियों को शिक्षित कर देने से देश का कल्याण हो जाएगा? अपने देश के प्रति एक देशभक्त नागरिक के मन में ऐसे अनेक प्रश्नों का उठना स्वाभाविक है, और यह अच्छी बात है। लेकिन अपने प्रश्नों का उत्तर यदि यथार्थ रूप में नहीं प्राप्त होता है तो मन में खिन्नता आ जाती है।
राष्ट्र के उत्थान के लिए सबसे बड़ी जिस साधन की आवश्यकता है उसका नाम है- ‘मनुष्य’। मनुष्य जब अपने परिवार, समाज, राष्ट्र व समष्टि के प्रति समर्पित होता है तो वह नैतिक आचरण से युक्त होता है। वह अच्छे-बुरे, सत्य-असत्य, धर्म-अधर्म के अंतर को समझता है और जो कल्याणकारी है उसी मार्ग का चयन करता है। ऐसे ही विवेकी मनुष्यों से राष्ट्र बलवान बनता है। और जब भी ऐसे आदर्श व विवेकी मनुष्य की कमी देश में होती है तब अनाथाश्रम, वृद्धाश्रम अथवा महिला सुरक्षा के लिए कड़े कानून बनाने की आवश्यकता पड़ती है। स्वामी विवेकानन्द ने भारत की प्रत्येक समस्या के समाधान के लिए गहन चिन्तन किया और उन्होंने पाया कि राष्ट्रीय चरित्र से युक्त मनुष्य से ही राष्ट्र का उत्थान हो सकता है। स्वामीजी ने जोर देकर कहा है कि “मनुष्य, केवल मनुष्य भर चाहिए! आवश्यकता है- वीर्यवान, शौर्यवान, श्रद्धासम्पन्न, दृढ़विश्वासी व निष्कपट नवयुवकों की…।”
स्वामी विवेकानन्दजी के “मनुष्य निर्माण और राष्ट्र पुनरुत्थान” के आदर्श को साध्य करने के लिए विवेकानन्द केन्द्र देशभर में अपनी कार्य प्रणाली और कार्य पद्धति के माध्यम से राष्ट्र चेतना का अलख जगा रहा है। इसलिए देशवासी इस कार्य पद्धति का अंग बनें, यह समय की आवश्यकता है। देश करवट बदल रहा है। आधुनिकता की लहर इस तरह समाज पर हावी है कि मानों उसने सबको अपने में समेट लिया है। मोबाइल, स्मार्टफोन, टैब, कम्प्यूटर, टीवी जैसे आकर्षक उपकरणों के हम आदी हो चले हैं। इन उपकरणों की उपयोगिता है और वह अपने लिए आवश्यक भी है, लेकिन जब उपकरणों के हम गुलाम हो जाते हैं तो वह हमारे लिए हानिकारक साबित होते हैं।
एक विद्यार्थी ने मुझसे कहा, “भैया! आज मैंने शतक बनाया। बारह छक्के मारा!” मैंने कहा, “वाह! क्या बात है, तुमने तो कमाल कर दिया।” तो दीदी बोली, “इसमें क्या कमाल है! इसने तो मोबाइल के क्रिकेट गेम में शतक बनाया है!”
बालक बोला, “इसमें भी तो दिमाग लगता है न!” मैंने बालक के इस कथन में हामी भरी, और फिर कहा, “भाई! जरा मैदान में भी खेला कर। मोबाइल में खेलने भर से क्या होगा?” वह हँसने लगा और कहा, “भैया! खेलने के लिए दोस्त तो चाहिए। सब अपने-अपने ट्यूशन्स-क्लासेस में बीजी रहते हैं।”
यह एक ऐसा प्रसंग है जो मजबूर करता है कि बचपन किस ओर जा रहा है। दूसरी ओर घर जितने बड़े होते जा रहे हैं आपसी सम्बन्ध उतने ही दूर होते जा रहे हैं। सब अपने काम में इतने व्यस्त हैं कि पड़ोस में रहनेवाले व्यक्ति की स्थिति का अंदाजा लगाना कठिन है। आज फेसबुक, वाट्सेप, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया में तो सबके बहुत से मित्र होते हैं, प्रत्यक्ष जीवन में मित्रों व शुभचिंतकों की कंगाली होती है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की बातें तो होतीं हैं पर परिवार, समाज और राष्ट्र को जोड़नेवाली ‘एकात्मता’ का आदर्श बहुत कम देखने को मिलता है। ऐसे में समाज के हर एक वर्ग को राष्ट्रीय चेतना के आयाम में जोड़ना ही होगा। विवेकानन्द केन्द्र की कार्य प्रणाली और कार्य पद्धति से यह सम्भव है।
Answer:
I do not k ow the answer
pls foolw me