Q4. 'साधु-संतों के प्रति बढता अविश्वास' पर अपने विचार लिखिए
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भारतवर्ष आज एक अजीब ही स्थिति से गुजर रहा है जहाँ भारत की भूमि साधु संतो की और महापुरुषों की भूमि कहलाती थी । वहीँ आस्था की आड़ में आजकल के साधु संत आज इस पवित्र भूमि को दागदार कर रहे है। आये दिन कोई ना कोई साधु संत किसी ना केस में फसते जा रहे है और हैरानी की बात तो ये है कि उनके सभी असगंत कार्यो (ब्लात्कार, हत्या , हत्या की साजिश, यौन शौसन आदि में सम्मिलित होते है) को जानते हुए भी हम सब कुछ जानते हुए भी उनके समर्थक इनका विरोध ना कर इनके साथ खड़े नजर आ रहे है। वे सरकार की सहायता करने कि बजाय सरकारी प्रॉपर्टी को नुकसान, लोगो की हत्या, गाड़ियां जला देते है, बिना सोचे समझे की क्या सही है और क्या गलत है ।
अगर एक बार सोचे की जो काम उनके गुरु ने किया है यदि वही काम कोई और होता तो क्या उसको भी वो ऐसे ही बचाने की कोशिश करते ? जैसा अब कर रहे है, नहीं ना? तो फिर अपने गुरु के कुकर्मो को बचाने के लिए क्यों इतना उपदर्वी हो इतना उत्पात मचाते है क्यों इनके कुकर्मो को छुपाने में लगे रहते है ? ये बात समझ से बाहर है।
गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा, गुरु साक्षात् पर ब्रह्मा तस्मै श्री गुरवे नमः की परम्परा को निभाते आ रहे है और उन्हें ईश्वर से भी बड़ा मानने पर भी कोई गुरेज नहीं करते उनके लिए उनके गुरु ही सब कुछ है। साध्वी और उनके अनुयायी अपने गुरु पर अंध विश्वास करना अपनी शान समझते है। साध्वी और उनके अनुयायी यहाँ तक कि उनके लिए उनके बच्चे व् परिवार भी कोई अहमियत नहीं रखते उनके लिए वे सब कुछ छोड़ने के लिए तैयार रहते है। लेकिन बदले उन्हें बदले में क्या मिला। आज हर इंसान गुरु के नाम से ही डरने लगा है ऐसा क्यों?
ये बात जरूरी है कि गुरुभक्ति के बिना जीवन सफल नहीं लेकिन अंधी भक्ति भी तो आपको कभी सफल नहीं होने देगी। हम लोग इनके असगंत कर्मो में साथ देकर इनके हौसले को और बुलंद कर रहे है उन्हें और सगंत और गलत कार्यों के करने के लिए उकसा रहे है कि कुछ भी करो हम आपके साथ है और हमारे धर्म शास्त्रों में भी कहा गया है कि अधर्म का साथ देने का मतलब हम भी अधर्म ही कर रहे है क्या हम सही कर रहे है ये एक सोचने का विषय है। हमारी अंधी भक्ति जो ना तो इनके हक़ में, ना समाज और ना इनके भक्तो के सही साबित होता है इससे समाज के साथ साथ देश और हमारी पवित्र भावनाओ को भी ठेस पहुँचती है ।
इससे हमारा विश्वास ही नहीं डगमगाता बल्कि हमारी मानसिकता भी बहुत प्रभावित होती है। जो किसी के लिए भी सही नहीं होती। आज हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और राजस्थानके अधिकतर क्षेत्रो पर तो साधु संतो के डेरो का कब्ज़ा है और एक तरह की होड़ मची है कि किसके ज्यादा समर्थक और किसके कम। जैसी कोई संतगिरि न होकर कोई प्रतिस्पर्धा चल रही है कि जैसे भी चाहे उनका तरीका संगत हो चाहे असंगत बस आगे निकलना है। डेरा सच्चा सौदा, बाबा मान सिंह, रामवृक्ष , नामधारी , भनियारवाला, बाबा राम रहीम ब्रहम समाज, आर्य समाज सत्संग, और पता नहीं कितने डेरे और सत्संग समाज है इस समय भारत में और इनमे से जाने कितने पर तो क़ानूनी कार्यवाही चल रही है। जैसे आशाराम पर बलात्कार , रामपाल, हत्या और धमकी , प्यार सिंह, संस्थापक -भानियावाला, जिस पर गुरु ग्रन्थ साहिब को जलाने का केस दर्ज है, राम रहीम पर बलात्कार, हत्या और धमकी और पता नहीं कितने ।
ये बात जरूरी है कि गुरुभक्ति के बिना जीवन सफल नहीं लेकिन अंधी भक्ति भी तो आपको कभी सफल नहीं होने देगी। हम लोग इनके असगंत कर्मो में साथ देकर इनके हौसले को और बुलंद कर रहे है उन्हें और सगंत और गलत कार्यों के करने के लिए उकसा रहे है कि कुछ भी करो हम आपके साथ है और हमारे धर्म शास्त्रों में भी कहा गया है कि अधर्म का साथ देने का मतलब हम भी अधर्म ही कर रहे है क्या हम सही कर रहे है ये एक सोचने का विषय है। हमारी अंधी भक्ति जो ना तो इनके हक़ में, ना समाज और ना इनके भक्तो के सही साबित होता है इससे समाज के साथ साथ देश और हमारी पवित्र भावनाओ को भी ठेस पहुँचती है । इससे हमारा विश्वास ही नहीं डगमगाता बल्कि हमारी मानसिकता भी बहुत प्रभावित होती है। जो किसी के लिए भी सही नहीं होती। उदाहरण स्वरुप संत रामपाल को ही ले “ २००६ में संत रामपाल के सतलोक आश्रम जमीन को लेकर विवादित रहा।
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Explanation:
साधु, संस्कृत शब्द है जिसका सामान्य अर्थ 'सज्जन व्यक्ति' से है। लघुसिद्धान्तकौमुदी में कहा है- 'साध्नोति परकार्यमिति साधुः' (जो दूसरे का कार्य कर देता है, वह साधु है।)। वर्तमान समय में साधु उनको कहते हैं जो सन्यास दीक्षा लेकर गेरुए वस्त्र धारण करते है उन्हें भी साधु कहा जाने लगा है। साधु(सन्यासी) का मूल उद्देश्य समाज का पथप्रदर्शन करते हुए धर्म के मार्ग पर चलकर मोक्ष प्राप्त करना है। साधु सन्यासी गण साधना, तपस्या करते हुए वेदोक्त ज्ञान को जगत को देते है और अपने जीवन को त्याग और वैराग्य से जीते हुए ईश्वर भक्ति में विलीन हो जाते है।