Que. 2 बोलचाल की भाषा और रचनात्मक में क्या भेद हैं? दोनों के महत्व पर प्रकाश डालिए
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आमतौर से सामान्य भाषा के अन्तर्गत भाषा के कर्इ रूप उभर कर आते हैं। डॉ. भोलानाथ के अनुसार, ये रूप प्रमुखत: चार आधारों पर आधारित हैं- इतिहास, भूगोल, प्रयोग और निर्माता। इनमें प्रयोग क्षेत्र सबसे विस्तृत है। जब कर्इ व्यक्ति-बोलियों में पारम्पारिक सम्पर्क होता है, तब बोलचाल की भाषा का प्रसार होता है। दूसरे शब्दों में, आपस में मिलती-जुलती बोली या उपभाषाओं में हुए व्यवहार से बोलचाल की भाषा को विस्तार मिलता है। इसे ‘सामान्य भाषा’ के नाम से जाना जाता है। पर किसी भी भाषा की भाँति यह परिवर्तनशाील है, समकालीन, प्रयोगशील तथा भाषा का आधुनिकतम रूप है।
साधारणत: हिन्दी की तीन शैलियों की चर्चा की जाती है। हिन्दी, उर्दू और हिन्दुस्तानी। शिक्षित हिन्दी भाषी अक्सर औपचारिक स्तर पर (भाषण, कक्षा में अध्ययन, रेडियो वार्ता, लेख आदि में) हिन्दी या उर्दू शैली का प्रयोग करते हैं। अनौपचारिक स्तर पर (बाजार में, दोस्तों में गपशप करते समय) प्राय: हिन्दुस्तानी का प्रयोग करते हैं। जिसमें हिन्दुस्तानी के दो रूप पाये जाते हैं। एक रूप वह है जिसमें अंगे्रजी के प्रचलित शब्द हैं और दूसरे में अगृहीत अंग्रजी शब्द का प्रचलन है। बोलचाल की हिन्दी में ये सारी शैलियाँ मौजूद रहती हैं। अर्थात् इसमें सरल बहुप्रचलित शब्दों का प्रयोग होता है। चाहे वह तत्सम प्रधान हिन्दी हो या परिचित उर्दू अथवा अंग्रजी-मिश्रित हिन्दुस्तानी, व्याकरण तो हिन्दी का ही रहता है।
रचनात्मक लेखन : तात्पर्य
रचनात्मकता का अर्थ है सृजनात्मकता। सृजनात्मकता अर्थात् वही जिसे कॉलरिज कल्पना कहता है। कल्पना अर्थात्- नव-सृजन की वह जीवनी शक्ति जो कलाकारों, कवियों तथा वैज्ञानिकों और दार्शनिकों में होती है। जो अपने आसपास की दुनिया को आधार बना कर ही नव निर्माण करते हैं। सृजनात्मक लेखन अर्थात् नूतन निर्माण की संकल्पना, प्रतिभा एवं शक्ति से निर्मित पदार्थ(लेखन)। रचनात्मक शक्ति के माध्यम से किसी एक भौतिक पदार्थ द्वारा भिन्न भिन्न कृतियों का निर्माण करना। उदाहरण के लिए लकड़ी(भौतिक पदार्थ) में से रचनात्मक शक्ति द्वारा अलग-अलग कलात्मक कृतियों का निर्माण। उसी प्रकार रेत के द्वारा बालक अपनी रचनात्मकता शक्ति द्वारा घर बनाता है तो वहीं एक कलाकार रेत में अपनी कृति से भावों को उतारता है। कोई रेत का उपयोग मकान (उपयोगी कला) बनाने में करता है तो कोई रंगोली(सौन्दर्यात्मक/ललित कला) बनाने में। जिस तरह रेत अथवा लकड़ी के माध्यम से सौन्दर्यात्मक एवं ललित कला का निर्माण होता है ठीक उसी तरह जब शब्दों से भी विभिन्न उपयोगी एवं ललित कृतिओं की रचना होती है। जहाँ शब्दों के माध्यम से सौन्दर्यपरक रचनाओं का निर्माण होता है तब मोटे-तौर पर रचनात्मक-लेखन कह सकते हैं।