Question 3:
गांधी जी ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है?
Class 9 NCERT Hindi Kshitij Chapter उपभोक्तावाद की संस्कृति
Answers
Answered by
97
‘उपभोक्तावाद की संस्कृति ‘ पाठ के लेखक डॉ० श्याम चरण दुबे हैं। इस पाठ में लेखक ने विज्ञापनों की चमक दमक से प्रभावित होकर खरीदारी करने वालों को सचेत किया है कि इस प्रकार गुणों पर ध्यान न देकर बाहरी दिखावे से प्रभावित होकर कुछ खरीदने की आदत से समाज में दिखावे को बढ़ावा मिलेगा तथा हर जगह अशांति और विषमता फैल जाएगी। एक दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।ईर्ष्या की भावना समाज में अशांति को बढ़ावा दे रही है।
उत्तर :-
गांधी जी ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती इसलिए कहा है क्योंकि वे चाहते थे कि हम अपनी परंपराओं पर दृढ़ रहें तथा नवीन सांस्कृतिक मूल्यों को अच्छी प्रकार से जांच परख कर ही स्वीकार करें ।हमें बिना सोचे समझे किसी का भी अनुकरण नहीं करना चाहिए अन्यथा हमारा समाज पथभ्रष्ट हो जाएगा।
आशा है कि यह उत्तर आपकी मदद करेगा।।
उत्तर :-
गांधी जी ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती इसलिए कहा है क्योंकि वे चाहते थे कि हम अपनी परंपराओं पर दृढ़ रहें तथा नवीन सांस्कृतिक मूल्यों को अच्छी प्रकार से जांच परख कर ही स्वीकार करें ।हमें बिना सोचे समझे किसी का भी अनुकरण नहीं करना चाहिए अन्यथा हमारा समाज पथभ्रष्ट हो जाएगा।
आशा है कि यह उत्तर आपकी मदद करेगा।।
Answered by
32
=> गांधी जी ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए
चुनौती इसलिए कहा है क्योंकि दिखावे की संस्कृति के फैलने
से सामाजिक अशांति और विनम्रता बढ़ती जा रही है हमें
अपने समाज में स्वास्थ्य सांस्कृतिक प्रभाव बनाए रखने होंगे
यदि ऐसा ना किया गया तो हमारी सामाजिक नियोजित
जाएगी उपभोक्ता संस्कृति हमारे एक बहुत बड़ा खतरा है
लेखक का कहना है कि उपभोक्तावाद के दर्शन की परिभाषा
बदल दी है आज के समय में बढ़ते हुए उत्पादों का भोग
करना ही सुख कहलाता है दूसरे शब्दों में जिन उत्पादों से
हमारी इच्छा पूर्ति को सुख करते हैं लेखक का कहना है कि
उत्पाद के प्रति समर्पित होकर हम अपने चरित्र को भी बदल
रहे हैं
चुनौती इसलिए कहा है क्योंकि दिखावे की संस्कृति के फैलने
से सामाजिक अशांति और विनम्रता बढ़ती जा रही है हमें
अपने समाज में स्वास्थ्य सांस्कृतिक प्रभाव बनाए रखने होंगे
यदि ऐसा ना किया गया तो हमारी सामाजिक नियोजित
जाएगी उपभोक्ता संस्कृति हमारे एक बहुत बड़ा खतरा है
लेखक का कहना है कि उपभोक्तावाद के दर्शन की परिभाषा
बदल दी है आज के समय में बढ़ते हुए उत्पादों का भोग
करना ही सुख कहलाता है दूसरे शब्दों में जिन उत्पादों से
हमारी इच्छा पूर्ति को सुख करते हैं लेखक का कहना है कि
उत्पाद के प्रति समर्पित होकर हम अपने चरित्र को भी बदल
रहे हैं
Similar questions