Question 3:
नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए -
(क) जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।
(ख) तुम परदे का महत्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं।
(ग) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ़ हाथ की नहीं, पाँव की अँगुली से इशारा करते हो?
Class 9 NCERT Hindi Kshitij Chapter प्रेमचंद के फटे जूते
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‘प्रेमचंद के फटे जूते’ लेखक हरिशंकर परसाई द्वारा रचित एक व्यंग रचना है। इसमें लेखक ने प्रेमचंद के फटे हुए जूते एवं उनके साधारण कपड़े जिसमें वे फोटो खिंचवाने भी चले जाते हैं, का वर्णन किया है। लेखक ने प्रेमचंद की सादगी का वर्णन करते हुए समाज में फैली दिखावे की परंपरा पर व्यंग किया है।
उत्तर :-
क) लेखक यह कहना चाहता है कि जूता टोपी से महंगा होता है इसलिए एक सामान्य व्यक्ति के लिए जूता खरीदना आसान नहीं होता। एक जूते की कीमत में अनेक टोपियां खरीदी जा सकती है। टोपी तो नई पहनी जा सकती है परंतु जूता नया नहीं लिया जा सकता। जीवन की यह विडंबना है कि जिसका स्थान पांव में है अर्थात नीचे है, वह अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, उसकी कीमत अधिक होती है जबकि सिर पर बिठाने योग्य व्यक्ति को सम्मान कम मिलता है।
ख) लेखक कहता है कि आज के युग में सभी अपनी कमियों ,कमजोरियों तथा बुराइयों को ढक कर रखना चाहते हैं इसलिए पर्दे का महत्व को स्वीकार करते हैं परंतु प्रेमचंद किसी प्रकार के बाहरी दिखावे में यकीन नहीं रखते थे इसलिए पर्दे का महत्व नहीं समझते थे। इसलिए जूता फटा होने पर भी वह अपने आप को लज्जित महसूस नहीं करते और न ही उसे छुपाने के लिए किसी चीज का सहारा लेते थे । आज के दिखावे प्रिय लोग बाहरी तड़क-भड़क में यकीन करते हैं इसलिए पर्दे के प्रथा पर निछावर हो रहे हैं।
ग) प्रेमचंद की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं था। वह जिसे पसंद नहीं करते थे उसकी खुलकर आलोचना करते थे। इसलिए लेखक ने लिखा है कि प्रेमचंद जिससे घृणा करते थे, उसकी ओर हाथ की नहीं पैर की उंगली से इशारा करते थे अर्थात उसे हमेशा उन्होंने अपनी ठोकरों पर रखा, अपने जूते की नोक पर रखा और उसके विरुद्ध संघर्ष करते रहे।
आशा है कि यह उत्तर आपकी मदद करेगा।।।
उत्तर :-
क) लेखक यह कहना चाहता है कि जूता टोपी से महंगा होता है इसलिए एक सामान्य व्यक्ति के लिए जूता खरीदना आसान नहीं होता। एक जूते की कीमत में अनेक टोपियां खरीदी जा सकती है। टोपी तो नई पहनी जा सकती है परंतु जूता नया नहीं लिया जा सकता। जीवन की यह विडंबना है कि जिसका स्थान पांव में है अर्थात नीचे है, वह अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, उसकी कीमत अधिक होती है जबकि सिर पर बिठाने योग्य व्यक्ति को सम्मान कम मिलता है।
ख) लेखक कहता है कि आज के युग में सभी अपनी कमियों ,कमजोरियों तथा बुराइयों को ढक कर रखना चाहते हैं इसलिए पर्दे का महत्व को स्वीकार करते हैं परंतु प्रेमचंद किसी प्रकार के बाहरी दिखावे में यकीन नहीं रखते थे इसलिए पर्दे का महत्व नहीं समझते थे। इसलिए जूता फटा होने पर भी वह अपने आप को लज्जित महसूस नहीं करते और न ही उसे छुपाने के लिए किसी चीज का सहारा लेते थे । आज के दिखावे प्रिय लोग बाहरी तड़क-भड़क में यकीन करते हैं इसलिए पर्दे के प्रथा पर निछावर हो रहे हैं।
ग) प्रेमचंद की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं था। वह जिसे पसंद नहीं करते थे उसकी खुलकर आलोचना करते थे। इसलिए लेखक ने लिखा है कि प्रेमचंद जिससे घृणा करते थे, उसकी ओर हाथ की नहीं पैर की उंगली से इशारा करते थे अर्थात उसे हमेशा उन्होंने अपनी ठोकरों पर रखा, अपने जूते की नोक पर रखा और उसके विरुद्ध संघर्ष करते रहे।
आशा है कि यह उत्तर आपकी मदद करेगा।।।
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