Hindi, asked by vikram991, 10 months ago

Question :-

शान्तरस की परिभाषा एवं उदाहरण लिखिए।​

Answers

Answered by PsychoUnicorn
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उत्तर→

रस की परिभाषा → रस को काव्य की आत्मा/प्राण भी माना जाता है। रस का शाब्दिक अर्थ "आनंद"। जिस काव्य को पढ़ने या सुनने से हमें आनंद की अनुभूति होती है वह रस कहलाता है।

शान्त रस → शांति रस हिंदी साहित्य का ९ रस है। काव्य में जहाँ वैराग्यजन्य विषय का वर्णन हो, वहाँ शान्त रस व्यंजित होता है। शांति रस निर्वेद या वैराग्य जैसे भाव दर्शाता है।

उदाहरण

१. यह संसार कागद की पुड़िया,

बूंद पड़े गल जाना है।

२. मेरो तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।

जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई॥

३. मन रे तन कागद का पुतला।

लागै बूंद बिनसि जाय छिन में, गरब करै क्या इतना

४. चलती चाकी देखकर, दिया कबीरा रोय ।

दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय ॥

५. मनरे ! परस हरि के चरण ।

सुभग सीतल कमल कोमल, त्रिविधि ज्वाला हरण॥


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Answered by Anonymous
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Answer:

Shant Ras – Shant Ras Ki Paribhasha

शान्त रस – Shant Ras अर्थ–तत्त्व–ज्ञान की प्राप्ति अथवा संसार से वैराग्य होने पर शान्त रस की उत्पत्ति होती है। जहाँ न दुःख है, न सुख, न द्वेष है, न राग और न कोई इच्छा है, ऐसी मन:स्थिति में उत्पन्न रस को मुनियों ने ‘शान्त रस’ कहा है।

शांत रस के अवयव (उपकरण )

स्थायी भाव–निर्वेद।

आलम्बन विभाव–परमात्मा का चिन्तन एवं संसार की क्षणभंगुरता।

उद्दीपन विभाव–सत्संग, तीर्थस्थलों की यात्रा, शास्त्रों का अनुशीलन आदि।

अनुभाव–पूरे शरीर में रोमांच, पुलक, अश्रु आदि।।

संचारी भाव–धृति, हर्ष, स्मृति, मति, विबोध, निर्वेद आदि।

शांत रस के उदाहरण – Shant Ras ka Udaharan (Example Of Shant Ras In Hindi)

कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगो।

श्री रघुनाथ–कृपालु–कृपा तें सन्त सुभाव गहौंगो।।

जथालाभ सन्तोष सदा काहू सों कछु न चहौंगो।

परहित–निरत–निरंतर मन क्रम बचन नेम निबहौंगो॥

– तुलसीदास

स्पष्टीकरण–इस पद में तुलसीदास ने श्री रघुनाथ की कृपा से सन्त–स्वभाव ग्रहण करने की कामना की है। ‘संसार से पूर्ण विरक्ति और निर्वेद’ स्थायी भाव हैं। ‘राम की भक्ति’ आलम्बन है। साधु–सम्पर्क एवं श्री रघुनाथ की कृपा उद्दीपन है। ‘धैर्य, सन्तोष तथा अचिन्ता ‘अनुभाव’ हैं। ‘निर्वेद, हर्ष, स्मृति’ आदि’ संचारी भाव हैं। इस प्रकार यहाँ शान्त रस का पूर्ण परिपाक हुआ है।

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