Questions on international mother tongue day In hindi language
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युनेस्को ने सन् 1999 में प्रतिवर्ष 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाए जाने की घोषणा की थी।
सिर्फ मातृ शब्द की वजह से मातृभाषा का सही अर्थ और भाव समझने में हमेशा से दिक्कत हुई है। मातृभाषा बहुत पुराना शब्द नहीं है, मगर इसकी व्याख्या करते हुए लोग अक्सर इसे बहुत प्राचीन मान लेते हैं। हिन्दी का मातृभाषा शब्द दरअसल अंग्रेजी के मदरटंग मुहावरे का शाब्दिक अनुवाद है।
बच्चे का शैशव जहां बीतता है, उस माहौल में ही जननी भाव है। जिस परिवेश में वह गढ़ा जा रहा है, जिस भाषा के माध्यम से वह अन्य भाषाएं सीख रहा है, जहां विकसित-पल्लवित हो रहा है, वही महत्वपूर्ण है।
हिन्दी के संदर्भ में सामने नहीं आया बल्कि इसका संदर्भ बांग्लाभाषा और बांग्ला परिवेश था। अंग्रेजी राज में जिस कालखंड को पुनर्जागरणकाल कहा जाता है उसका उत्स बंगाल भूमि से ही है। राजा राममोहनराय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर जैसे उदार राष्ट्रवादियों का सहयोग अंग्रेजों ने शिक्षा प्रसार हेतु लिया। पूरी दुनिया में बह रही नवजागरण की बयार को भारतीय जन भी महसूस करें इसके लिए भारतीयों को पारंपरिक अरबी-फारसी की शिक्षा की बजाय अंग्रेजी सीखने की ज़रूरत मैकाले ने महसूस की। यहां हम उसकी शिक्षा पद्धति की बहस में नहीं पड़ेंगे। सिर्फ भाषा की बात करेंगे। हर काल में शासक वर्ग की भाषा ही शिक्षा और राजकाज का माध्यम रही है। मुस्लिम दौर में अरबी-फारसी शिक्षा का माध्यम थी। यह अलग बात है कि अरबी-फारसी में शिक्षा ग्रहण करना आम भारतीय के लिए राजकाज और प्रशासनिक परिवेश को जानने में तो मदद करता था मगर इन दोनों भाषाओं में ज्ञानार्जन करने से आम हिन्दुस्तानी के वैश्विक दृष्टिकोण में, संकुचित सोच में कोई बदलाव नहीं आया। क्योंकि अरबी फारसी का दायरा सीमित था। अरबी-फारसी के जरिये पढ़ेलिखे हिन्दुस्तानी प्राचीन भारत, फारस और अरब आदि की ज्ञान-परंपरा से तो जुड़ रहे थे मगर सुदूर पश्चिम में जो वैचारिक क्रांति हो रही थी उसे हिन्दुस्तान में लाने में अरबी-फारसी भाषाएं सहायक नहीं हो रही थी।
भारतीयों को अंग्रेजी भाषा भी सीखनी चाहिए, यह सोच महत्वपूर्ण थी। इसी मुकाम पर यह बात भी सामने आई कि विशिष्ट ज्ञान के लिए तो अंग्रेजी माध्यम बने मगर आम हिन्दुस्तानी को आधुनिक शिक्षा उनकी अपनी ज़बान में मिले। उसी वक्त मदर टंग जैसे शब्द का अनुवाद मातृभाषा सामने आया। यह बांग्ला शब्द है और इसका अभिप्राय भी बांग्ला से ही था। तत्कालीन समाज सुधारक चाहते थे कि आम आदमी के लिए मातृभाषा में (बांग्ला भाषा) में आधुनिक शिक्षा दी जाए। आधुनिक मदरसों की शुरूआत भी बंगाल से ही मानी जाती है।
सिर्फ मातृ शब्द की वजह से मातृभाषा का सही अर्थ और भाव समझने में हमेशा से दिक्कत हुई है। मातृभाषा बहुत पुराना शब्द नहीं है, मगर इसकी व्याख्या करते हुए लोग अक्सर इसे बहुत प्राचीन मान लेते हैं। हिन्दी का मातृभाषा शब्द दरअसल अंग्रेजी के मदरटंग मुहावरे का शाब्दिक अनुवाद है।
बच्चे का शैशव जहां बीतता है, उस माहौल में ही जननी भाव है। जिस परिवेश में वह गढ़ा जा रहा है, जिस भाषा के माध्यम से वह अन्य भाषाएं सीख रहा है, जहां विकसित-पल्लवित हो रहा है, वही महत्वपूर्ण है।
हिन्दी के संदर्भ में सामने नहीं आया बल्कि इसका संदर्भ बांग्लाभाषा और बांग्ला परिवेश था। अंग्रेजी राज में जिस कालखंड को पुनर्जागरणकाल कहा जाता है उसका उत्स बंगाल भूमि से ही है। राजा राममोहनराय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर जैसे उदार राष्ट्रवादियों का सहयोग अंग्रेजों ने शिक्षा प्रसार हेतु लिया। पूरी दुनिया में बह रही नवजागरण की बयार को भारतीय जन भी महसूस करें इसके लिए भारतीयों को पारंपरिक अरबी-फारसी की शिक्षा की बजाय अंग्रेजी सीखने की ज़रूरत मैकाले ने महसूस की। यहां हम उसकी शिक्षा पद्धति की बहस में नहीं पड़ेंगे। सिर्फ भाषा की बात करेंगे। हर काल में शासक वर्ग की भाषा ही शिक्षा और राजकाज का माध्यम रही है। मुस्लिम दौर में अरबी-फारसी शिक्षा का माध्यम थी। यह अलग बात है कि अरबी-फारसी में शिक्षा ग्रहण करना आम भारतीय के लिए राजकाज और प्रशासनिक परिवेश को जानने में तो मदद करता था मगर इन दोनों भाषाओं में ज्ञानार्जन करने से आम हिन्दुस्तानी के वैश्विक दृष्टिकोण में, संकुचित सोच में कोई बदलाव नहीं आया। क्योंकि अरबी फारसी का दायरा सीमित था। अरबी-फारसी के जरिये पढ़ेलिखे हिन्दुस्तानी प्राचीन भारत, फारस और अरब आदि की ज्ञान-परंपरा से तो जुड़ रहे थे मगर सुदूर पश्चिम में जो वैचारिक क्रांति हो रही थी उसे हिन्दुस्तान में लाने में अरबी-फारसी भाषाएं सहायक नहीं हो रही थी।
भारतीयों को अंग्रेजी भाषा भी सीखनी चाहिए, यह सोच महत्वपूर्ण थी। इसी मुकाम पर यह बात भी सामने आई कि विशिष्ट ज्ञान के लिए तो अंग्रेजी माध्यम बने मगर आम हिन्दुस्तानी को आधुनिक शिक्षा उनकी अपनी ज़बान में मिले। उसी वक्त मदर टंग जैसे शब्द का अनुवाद मातृभाषा सामने आया। यह बांग्ला शब्द है और इसका अभिप्राय भी बांग्ला से ही था। तत्कालीन समाज सुधारक चाहते थे कि आम आदमी के लिए मातृभाषा में (बांग्ला भाषा) में आधुनिक शिक्षा दी जाए। आधुनिक मदरसों की शुरूआत भी बंगाल से ही मानी जाती है।
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