Hindi, asked by malhaashish, 4 months ago

quite india movement par sawad write in hindi​

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Answered by anupkanoth78
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Answer:

second world war you are taking about this only

Answered by santhalingam2005
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अगस्त महीने का आंदोलनों से बहुत ही पुराना संबंध है. 1942 में इसी महीने में गांधी जी ने अंग्रेजों के खिलाफ अपनी आखिरी मुहिम “भारत छोड़ो आंदोलन” (Quit India movement) चलाई जिसे हम “अगस्त क्रांति” के नाम से भी जानते हैं. आजादी को तरसते करोड़ो देशभक्तों ने इस आंदोलन के जरिए ब्रिटिश शासन की नींव को हिलाकर रख दिया. बाद में इसी आंदोलन ने 1947 में मिली आजादी की नींव रखी.

भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India movement) के दौरान 8 अगस्त, 1942 ई. को “अखिल भारतीय कांग्रेस” की बैठक बम्बई (मुंबई) के ऐतिहासिक ‘ग्वालिया टैंक‘ में हुई. महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के ऐतिहासिक “भारत छोड़ो प्रस्ताव” को कांग्रेस कार्यसमिति ने कुछ संशोधनों के बाद 8 अगस्त, 1942 ई. को स्वीकार कर लिया और नौ अगस्त से भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई.



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भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India movement)

“क्रिप्स मिशन” के खाली हाथ भारत से वापस जाने पर भारतीयों को अपने छले जाने का अहसास हुआ. “क्रिप्स मिशन” की असफलता के बाद गांधी जी ने एक और बड़ा आन्दोलन प्रारम्भ करने का निश्चय लिया जिसे भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India movement) का नाम दिया गया. दूसरी ओर दूसरे विश्वयुद्ध के कारण परिस्थितियां अत्यधिक गंभीर होती जा रही थीं. जापान सफलतापूर्वक सिंगापुर, मलाया और बर्मा पर कब्ज़ा कर भारत की ओर बढ़ने लगा, वहीं युद्ध के कारण तमाम वस्तुओं के दाम बेतहाशा बढ़ रहे थे और इस वजह से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारतीय जनमानस में असन्तोष व्याप्त होने लगा था.



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महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के आंदोलन की प्रकृति

महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) द्वारा चलाए गए आंदोलनों की दो मुख्य प्रवृत्तियां रहीं. स्वयं एक धार्मिक व्यक्ति होने के बाद भी उन्होंने अपनी संघर्ष संबंधी कोशिशों में धर्म को हस्तक्षेप नहीं करने दिया. दूसरी तरफ गांधी ने अंग्रेजी साम्राज्यवाद को मुख्य दुश्मन की तरह पेश किया. व्यापक पैमाने पर लोग इन आंदोलनों से इसलिए जुड़े कि उन्होंने स्वयं महसूस किया कि उनकी दरिद्रता और समस्याओं के लिए अंग्रेजी साम्राज्यवाद काफी हद तक जिम्मेदार है.

इसलिए जब उन्होंने 1942 में देश छोड़ो आंदोलन की आवाज खड़ी की तो देश के कोने-कोने में इसके समर्थन में लहर चल पड़ी. परंतु एक नैतिक व्यक्ति होने के नाते गांधी जी को जब लगा कि आंदोलन में कुछ ऐसे तत्व आ गए हैं जो इसे कमजोर करेंगे तो उन्होंने आंदोलन को स्थगित कर दिया. इस तरह का हौसला आज के दौर में शायद ही किसी में
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