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1. भारतीय संस्कृति के प्रमुख लक्षण निम्न में से कौन हैं?
(अ) प्राचीनता
(ब) दीर्घजीविता
(स) सहिष्णुता
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Answer:
I think the correct answer is option a prachinta
Answer:
भारतीय संस्कृति के प्रमुख लक्षण हैं:
(अ) प्राचीनता
संस्कृति के प्रमुख लक्षण या विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
सीखा हुआ व्यवहार-व्यक्ति समाज में रहकर जन्म से मृत्यु तक कुछ न कुछ सीखता ही रहता है और अनुभव प्राप्त करता रहता है, जो आगे चलकर संस्कृति का रूप धारण कर लेता है। संस्कृति किसी एक की न होकर, समूह की हुआ करती है। अत: समूह के सीखे हुए व्यवहारों को ही संस्कृति कहा जाता है।
हस्तान्तरणशीलता-संस्कृति सीखा हुआ व्यवहार है, जो अनेक पीढ़ियों तक हस्तान्तरित होता रहता है। मनुष्य एक बौद्धिक प्राणी है, अत: वह अपने ज्ञान के आधार पर अपने सीखे हुए व्यवहार को आने वाली पीढ़ी को हस्तान्तरित कर देता है और इस हस्तान्तरण का आधार उस समूह की भाषा और उस समूह के द्वारा स्वीकृति प्राप्त प्रतीक या चिह्न होते हैं, जो कि अत्यन्त ही पवित्र समझे जाते हैं, और इन प्रतीकों के प्रति समूह की गहरी श्रद्धा होती है। हस्तान्तरणशीलता के कारण ही संस्कृति हज़ारों-लाखों वर्षों के बाद भी नष्ट नहीं होती है।
Explanation:
संस्कृति में सभी सामाजिक गुणों का समावेश होता है, जैसे - धर्म, प्रथा, परम्परा, रीति-रिवाज, रहन-सहन, क़ानून, साहित्य, भाषा आदि। संस्कृति समूह के सदस्यों के व्यवहारों का आदर्श रूप होती है और प्रत्येक सदस्य उसे आदर्श मानता है।
सामाजिकता-व्यक्ति के द्वारा संस्कृति का निर्माण होता है और हर व्यक्ति में संस्कृति के गुण पाये जाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति संस्कृति के सम्बन्ध में प्रयत्नशील रहता है, किन्तु संस्कृति व्यक्तिगत नहीं होती, वह सामाजिक होती है। किसी व्यक्ति विशेष के गुणों को संस्कृति नहीं कहा जा सकता है। संस्कृति सामाजिक गुणों का नाम है। संस्कृति में सभी सामाजिक गुणों का समावेश होता है, जैसे - धर्म, प्रथा, परम्परा, रीति-रिवाज, रहन-सहन, क़ानून, साहित्य, भाषा आदि।
आदर्शात्मक-संस्कृति समूह के सदस्यों के व्यवहारों का आदर्श रूप होती है और प्रत्येक सदस्य उसे आदर्श मानता है। संस्कृति में सामाजिक विचार, व्यवहार, प्रतिमान एवं आदर्श प्रारूप होते हैं और इन्हीं के अनुसार कार्य करना श्रेष्ठ समझा जाता है। प्रत्येक समाज अपनी संस्कृति को दूसरे समाजों की संस्कृति से श्रेष्ठ मानता है। इस श्रेष्ठता का आधार उसकी संस्कृति के आदर्श प्रतिरूप ही हैं।
आवश्यकताओं की पूर्ति-आवश्यकता आविष्कार की जननी है, और इन्हीं आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जो साधन या उपकरण अपनाए जाते हैं, कालान्तर में वे ही संस्कृति का रूप धारण कर लेते हैं। अनेक आवश्यकताएँ ऐसी होती हैं, जिनकी पूर्ति अन्य साधनों से न होकर संस्कृति के माध्यम से होती है। सामाजिक और प्राणिशास्त्रीय दोनों प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति सतत संस्कृति द्वारा होती है।