रेडियो और टीवी की भाषा की चार विशेषताओं पर सोदहरण प्रकाश डालिए
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Explanation:
टेलिविज़न धारावाहिक या रेडियो धारावाहिक ऐसी नाटकीय कथा को कहते हैं जिसे किश्तों में विभाजित कर के उन किश्तों को टेलिविज़न या रेडियो पर एक-एक करके दैनिक, साप्ताहिक, मासिक या किसी अन्य क्रम के अनुसार प्रस्तुत किया जाता है। इन्हें अंग्रेज़ी व कई अन्य भाषाओं में साबुन नाटक या सोप ऑपेरा (soap opera) कहा जाता है क्योंकि ऐसे रेडियो धारावाहिकों को शुरू में प्रॉक्टर एंड गैम्बल, कोलगेट-पामोलिव और लीवर ब्रदर्स जैसी साबुन बनाने वाली कम्पनियों के सौजन्य से पेश किया जाता था।[1] इन धारावाहिकों को टी वी सीरियल (TV serial) या टी वी शृंखला भी कहते हैं।
टेलिविज़न व रेडियो धारावाहिकों का एक अहम तत्व उनकी कहानियों का अनंत चलता हुआ विस्तार होता है, जिसमें मुख्य कथाक्रम के अन्दर नई कहानियाँ आरम्भ होती है और फिर कई कड़ियों के दौर में विकसित होती हैं और फिर अंजाम पर पहुँचती हैं। कई ऐसी कहानियाँ एक-साथ चल सकती हैं और धारावाहिक लिखने-बनाने वाले अक्सर इनका रुख़ दर्शकों की बदलती रुचियों और भावनाओं के अनुसार बनाते जाते हैं। इसी तरह कहानी में मोड़ देकर उन पात्रों की भूमिका बढ़ा दी जाती है जो दर्शकों की रूचि रखें और उन्हें अक्सर निकाल दिया जाता है जिनमें दर्शकों को दिलचस्पी कम हो। भारत में 'हम लोग', 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी', 'ससुराल गेंदा फूल', 'यह रिश्ता क्या कहलाता है' और सीआईडी जैसे धारावाहिक बहुत सफल रहे हैं। १९८० के दशक में पाकिस्तान के 'धूप किनारे' और 'तन्हाईयाँ' जैसे धारावाहिक भी सफल रहे और भारत में भी देखे गए।[2] अमेरिका का 'गाइडिंग लाईट' (Guiding Light) नामक धारावाहिक १९३७ में रेडियो पर शुरू हुआ, १९५२ में टेलिविज़न पर स्थानांतरित हुआ और फिर २००९ में जाकर बंद हुआ - कुछ स्रोत इसे विश्व का सबसे लम्बे चलने वाला धारावाहिक बताते हैं।[3]
1970 के दशक के अंत में दूरदर्शन पर दो धारावाहिक शुरू हुए थे जिन्हें भारत के पहले धारावाहिकों का दर्जा दिया गया था। इनके नाम थे 'अशान्ति शान्ति के घर' जिसमें आगा और नादिरा ने मुख्य भूमिकायें निभाईं थीं एवं 'लड्डू सिंह टैक्सी ड्राइवर' जिसमें 'पेंटल ने मुख्य भूमिका निभाई थी।