Hindi, asked by virendra959945, 10 months ago

'राग दरबारी' उपन्यास की उपन्यास के तत्वों की दृष्टि से समीक्षा कीजिए

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Answered by shishir303
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राग दरबारी उपन्यास के तत्वों की समीक्षा...

“राग दरबारी” उपन्यास ‘श्रीलाल शुक्ल’ द्वारा लिखा गया उपन्यास है। राग दरबारी उपन्यास में लेखक ने भारतीय गाँवों का सजीव और यथार्थवादी चित्रण किया है। उपन्यास की पृष्ठभूमि में शिवपाल गंज नामक गाँव है जो उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र में स्थित है। उपन्यास की कथा का सूत्रधार रंगनाथ नाम का शोध छात्र अपने स्वास्थ्य सुधार हेतु शिवपाल गंज में अपने मामा वैद्य जी के पास आता है। शिवपालगंज से शुरू हुई यह कथा धीरे-धीरे चारों तरफ फैल जाती है और पूरे देश को अपने दायरे में समेट लेती है।

राग दरबारी का कथानक और उसकी सारी घटनाएं का केंद्र शिवपाल गंज है और यह शिवपाल गंज भारत के किसी भी आम गाँव जैसा ही है। शिवपाल के एक प्रमुख पात्र वैद्य जी इस कथानक के प्रमुख केंद्र हैं और शिवपालगंज की राजनीति के आधार स्तंभ हैं। वैद्य जी अवसरवादी नेताओं के प्रतिनिधि हैं और वह कॉलेज, पंचायत और कोआपरेटिव समिति के माध्यम से तीन स्तरीय राजनीतिक क्रांति कर रहे हैं।

राग दरबारी का प्रस्तुतीकरण परंपरागत उपन्यास की अभिव्यंजना शैली से सर्वथा भिन्न है। हमारे देश की स्वतंत्रता के बाद धीरे-धीरे हमारा नैतिक पतन होता रहा है और आजादी के बाद हमारे देश के लोगों के चरित्र का पतन ही होता रहा है उपन्यास ने इसी चारित्रिक पतन की ओर संकेत किया है।

एक जागरूक नगारिक होने के नाते लेखक यह बात सर्वाधिक पीड़ा देती है कि देश में शिक्षा की निरंतर उपेक्षा हुई। राग दरबारी की कथावस्तु व्यंगात्मक शैली की है जिससे पाठक से बंधा रहता है।

राग दरबारी उपन्यास में लेखक ने वर्तमान विघटित समाज का व्यंगपूर्ण चित्रण करते हुए व्यवस्था की अव्यवस्था पर करारी चोट की है। राग दरबारी उपन्यास हमारे आजाद भारत की नवीन व्यवस्थाओं पर करारा व्यंग करता है जो केवल नारों के रूप में ही जीवित रह गई हैं, वास्तविकता के धरातल पर उनका कोई अस्तित्व नहीं है।

उपन्यास रिपोतार्ज शैली में लिखा गया और उपन्यास की कथावस्तु ग्रामीण पृष्ठभूमि की है। पूरे उपन्यास में व्यंग के माध्यम से जीवन के विभिन्न क्षेत्रों की विसंगतियों की अभिव्यक्ति की गई है और व्यवस्था के विरुद्ध आक्रोश व्यक्त किया गया है।

सामाजिक जीवन की टूटते हुए मूल्यों के प्रति लेखक ने अत्यंत प्रभावशाली ढंग से व्यंजना की है। लेखक ने स्वतंत्र भारत के गांव की बदलती तस्वीर बिल्कुल सच्चाई के साथ दिखाई है।

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