र्घ उत्तरीय प्रश्न
1. 'संस्कृति क्या है ?' पाठ के आधार पर सभ्यता और संस्कृति में अंतर स्पष्ट करें।
2. संस्कृति पुकार-पुकार कर कह रही है कि इन बमों और हथियारों को काम में मत लाओ-आशय स्पष्ट
करें।
3. हमारी संस्कृति किस प्रकार हमें पशुत्व छोड़ मनुष्यत्व की ओर प्रवृत्त करती है ?
4. "भारत की संस्कृति विविधता में भी एकता को प्रदर्शित करती है।''-कैसे और क्यों ?
5. “हमारी संस्कृति दुनिया की संस्कृति का आईना बन सकती है"-क्यों ?
6. हमारी संस्कृति को उन्नत बनाने वाले चार अध्याय कौन-कौन से हैं'
7. 'संस्कृति धन नहीं, गुण है।'-इस कथन को स्पष्ट करते हुए एक अनुच्छेद लिखिए।
-बोधन
निम्नलिखित शब्दों को बोलकर पढ़िए:
Answers
Answer:
1.संस्कृति किसी समाज में गहराई तक व्याप्त गुणों के समग्र स्वरूप का नाम है, जो उस समाज के सोचने, विचारने, कार्य करने के स्वरूप में अन्तर्निहित होता है।यह ‘कृ’ धातु से बना है। इस धातु से तीन शब्द बनते हैं ‘प्रकृति’ की मूल स्थिति, यह संस्कृत हो जाता है और जब यह बिगड़ जाता है तो ‘विकृत’ हो जाता है।
2.संस्कृति पुकार पुकार कह रही है कि इन बामो और हथियारों को काम में मत लाओ अर्थात बम और हथियार बनाना संस्कृति है पर उसे दूसरों के कुहीत के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.
3.सोचना तो क्या, उसे इतना भी पता नहीं चलता कि उसके भीतर नख बढ़ा लेने की जो सहजात वृत्ति है, वह उसके पशुत्व का प्रमाण है। उन्हें काटने की जो प्रवृत्ति है, वह उसके मनुष्यता की निशानी है और यद्यपि पशुत्व के चिह्न उसके भीतर रह गए हैं, पर वह पशुत्व को छोड़ चुका है। ... अस्त्र बढ़ाने की प्रवृत्ति मनुष्यता की विरोधनी है।
4.भारत विभिन्न संस्कृति, नस्ल, भाषा और धर्म का देश है। ये “विविधता में एकता” की भूमि है जहाँ अलग-अलग जीवन-शैली और तरीकों के लोग एकसाथ रहते हैं। वो अलग आस्था, धर्म और विश्वास से संबंध रखते हैं। इन भिन्नताओं के बावजूद भी वो भाईचारे और मानवता के संबंध के साथ रहते हैं।
5.हमारे भारत देश की संस्कृति दुनिया की संस्कृति से बहुत ही अलग है भारतीय देश में 2 जातियों दो देश और सभी लोग मिलकर रहते हैं ओर उन्ही प्रभाव को ठीक से अपने भीतर बचा कर हमारी संस्कृति इतना विशाल और उदार हो गई है कि आज सारी दुनिया की संस्कृति का आईना बन सकती है.
6.संस्कृति के चार अध्याय राष्ट्रकवि स्वर्गीय रामधारी सिंह दिनकर की एक बहुचर्चित पुस्तक है जिसे साहित्य अकादमी ने सन् १९५६ में न केवल पहली बार प्रकाशित किया अपितु आगे चलकर उसे पुरस्कृत भी किया। इस पुस्तक में दिनकर जी ने भारत के संस्कृतिक इतिहास को चार भागों में बाँटकर उसे लिखने का प्रयत्न किया है।
7.संस्कृति धन नहीं, गुण है- संस्कार धन से प्राप्त नहीं होता। यह तो वो गुण है, जो व्यक्ति के आन्तरिक भाव को उन्नत करता है। संस्कृति से मनुष्य कई गुण प्राप्त करता है। मनुष्य के भीतर दया, मोह, दूसरों का उपकार, सामाजिक आचरण इत्यादि संस्कृति से ही सीखता है।