रोहिणी को भारत की एक महान उपलब्धि क्यों बताया गया है
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4 मई 1994 को श्रीहरिकोटा से इसरो द्वारा संवर्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान (एएसएलवी-D4) के ऑनबोर्ड पर प्रमोचित तनीत रोहिणी उपग्रह श्रृंखला (स्रोस-सी 2), ने सात से अधिक वर्षों के लिए कक्षा में रहने के बाद आज सुबह(12 जुलाई 2001) को फिर से वायुमंडल में सफलतापूर्वक पुनःप्रवेश किया ।
Answer:
रोहिणी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा शुरू की गई उपग्रहों की एक श्रृंखला थी। रोहिणी श्रृंखला में चार उपग्रह थे, जो सभी भारतीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन द्वारा प्रक्षेपित किए गये थे और जिसमे से तीन सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित हो गये। श्रृंखला ज्यादातर प्रयोगात्मक उपग्रहों को प्रायोगिक प्रक्षेपण वाहन एसएलवी द्वारा लाँच करने पर आधारित थी।
Explanation:
मई 31, 1981
रोहिणी उपग्रह आरएस डी-1
38 किलो प्रयोगात्मक स्पिन स्थिर 16W ऊर्जा संभालने की क्षमतायुत RS-डी 1 का 31 मई, 1981 को एसएलवी -3 पर शार केंद्र से प्रमोचन किया गया था । प्रमोचन आंशिक रूप से सफल रहा क्योंकि उपग्रह ने निर्धारित ऊंचाई नहीं प्राप्त कर सका और सिर्फ 9 दिनों तक कक्षा में रहा । उपग्रह सुदूर संवेदन अनुप्रयोगों के लिए अपने साथ ठोस अवस्थिति कैमरा ले गया था।
मिशन प्रायोगिक
भार 38 कि.ग्रा.
ऑनबोर्ड पॉवर 16 वॉट्स
संचार वीएचएफ़ बैंड
स्थिरीकरण प्रचक्रण स्थिरीकृत
नीतभार सीमाचिह्न अनुपथ सूचक (सुदूर संवेदन नीतभार)
प्रमोचन दिनांक 31 मई, 1981
प्रमोचन स्थल शार केंद्र, श्रीहरिकोटा, भारत
प्रमोचन यान एसएलवी-3
कक्षा 186 x 418 कि.मी.(संपादित)
आनति 46o
कक्षीय कालावधि नौ दिन