English, asked by ayushs90773, 2 months ago

राइट टेन लाइन अबाउट सरस्वती पूजा​

Answers

Answered by rashidalam7766
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Explanation:

सरस्वती पूजा एक हमारे भारत का प्राचीन महोत्सव है जिसमें सरस्वती पूजा सरस्वती माता का हम पूजा करते हैं

सरस्वती माता जी ने हम ज्ञानी देवी के नाम से भी जानते हैं एक विद्यार्थी के लिए ज्ञानी उसका सब कुछ होता है

इसीलिए जब भी सरस्वती पूजा समारोह मनाया जाता है तब विद्यार्थी अपने पुस्तकों को सरस्वती माता के चरणों में ले जाकर रख देते हैं हमारे भारत में इसे बड़े ही शौक से मनाया जाता है बड़े-बड़े पंडित अथवा लोग जाकर सरस्वती माता के चरणों में पूजा करते हैं

Answered by itztalentedprincess
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प्रश्न:बसंत पंचमी के दिन किस का जन्मदिन मनाते हैं?

उत्तर:

बसंत पंचमी हर साल माघ के महीने में मनाया जाता है I बसंत पंचमी को हमला सरस्वती पूजा भी कहते हैं क्योंकि इस दिन देवी सरस्वती की पूजा होती है सभी बच्चे देवी सरस्वती की आराधना करते हैं और ज्ञान प्राप्त करते हैं ऐसा कहा जाता है कि देवी सरस्वती विद्या की देवी है I बसंत पंचमी के दिन पहला होली रहता है बसंत पंचमी की एक महीने बाद होली आता है लेकिन बसंत पंचमी के दिन पहला होली रहता है I इसलिए सारे बच्चे देवी सरस्वती की पूजा करते हैं उन पर किताब पेंसिल इरेज़र जितना भी पढ़ाई का सामान है उसे खाते हैं अभी रहते हैं फल चढ़ा की पूजा करते और आराधना करते हैं और देवी सरस्वती के साथ भी पहला होली मनाते हैं उनके चरणों में अबीर रखकर I

सरस्वती विद्या, बुद्धि, ज्ञान और वाणी की अधिष्ठात्री देवी है और सर्वदा शास्त्र-ज्ञान को देने वाली है। सृष्टिकाल में ईश्वर की इच्छा से अद्याशक्ति ने अपने को पांच भागों में विभक्त कर लिया था। वे राधा, पार्वती, सावित्री, दुर्गा और सरस्वती के रूप में भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न अंगों से प्रकट हुई थीं। उस समय श्रीकृष्ण के कण्ठ से उत्पन्न होने वाली देवी का नाम सरस्वती हुआ। इनके और भी नाम हैं, जिनमें से वाक्, वाणी, गी, गिरा, भाषा, शारदा, वाचा, श्रीश्वरी, वागीश्वरी, ब्राह्मी, गौ, सोमलता, वाग्देवी और वाग्देवता आदि अधिक प्रसिद्ध है। मां सरस्वती की महिमा और प्रभाव असीम है। ऋगवेद 10/125 सूक्त के आठवें मंत्र के अनुसार वाग्देवी सौम्य गुणों की दात्री और सभी देवों की रक्षिका है। सृष्टि-निर्माण भी वाग्देवी का कार्य है। वे ही सारे संसार की निर्मात्री एवं अधीश्वरी है। वाग्देवी को प्रसन्न कर लेने पर मनुष्य संसार के सारे सुख भोगता है। इनके अनुग्रह से मनुष्य ज्ञानी, विज्ञानी, मेधावी, महर्षि और ब्रह्मर्षि हो जाता है।

देवी सरस्वती के सिर्फ एक नहीं 9 रूप होते हैं I

देवी सरस्वती के नौ रूपों के नाम:

शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति.

एक-एक करके सभी रूपों की भी पूजा होती है जिसे हम लोग नवरात्रि भी कहते हैं I

नवरात्रि सितंबर के महीने में आता है इसमें 9 दिन होते हैं और 9 दिन में हर एक रुप की पूजा होती है एक-एक करके I

और 9 दिन अच्छे से पूजा होती है और जब आखिरी दिन आता है 9 दिन तो छोटे-छोटे बालिका को बुलाकर उनकी पूजा की जाती है ऐसा माना जाता है कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं और इसलिए लोग बालिका को बुलाकर उनकी पूजा की जाती है और उनको नौ देवी की रूप माने जाते हैं और उनमें से बालक भी रहता है क्योंकि भैरव बाबा पहले बहुत घमंडी है और देवी की पूजा नहीं करते थे लेकिन जब देवी ने उन्हें मारा तो फिर उनको अपनी गलती का एहसास हुआ क्षमा मांगा तो दीदी ने उन्हें यह वरदान दिया कि अब से जो भी मेरी पूजा करेगा उन्हें तुम्हारे ही पूजा करनी होगी मेरा भाई मान कर अगर वह तुम्हारी पूजा नहीं करते हैं तो उनकी तपस्या अधूरी रही हो उनको उनका फल नहीं मिलेगा पूजा का इसलिए जब भी हम लोग देवी की पूजा करते हैं तो उनके भाई भैरव बाबा का भी करते पूजा और जिसमें हम लोग नौ कन्या नौ बालिका को बुलाकर खिलाते हैं उसमें बालक भी रहता है भैरव बाबा के रूप में I आरती दशमा दिन विसर्जन हो जाता है देविका और साथ ही साथ विजयदशमी भी होती है इसके पीछे बहुत लंबी कहानी है लेकिन मैं आपको छोटा बना कर बताऊंगी कहानी अपने पिता का वचन पूर्ण करने के लिए श्री राम जी 14 वर्षों के लिए वनवास जा रहे थे तभी उनके साथ उनका भाई लक्ष्मण और उनकी पत्नी सीता भी गई थी और वहां वनवास में उन्होंने छोटी सी कुटिया मेरे रहते थे और 1 दिन श्री राम जी किसी काम से गए थे तभी उन्होंने बोला था सीता जी को कि आप घर से बाहर नहीं निकल जाएगा और इसलिए उनके भाई लक्ष्मण ने कुटिया के बाहर एक रेखा बना दी कि कोई भी अंदर नहीं आ सकेगा और तभी रावण एक पंडित का रूप धारण करके सीता जी के पास गया और कुछ खाने को मांगने लगा तभी सीता जी का का दिल पिघल गया और वह खाना देने के लिए रेखा पार कर गई तभी रावण ने उन का हरण कर लिया और जब यह बात श्री राम जी को पता चली तो वह सीता मैया को बचाने के लिए निकल पड़े और उन्हें छोरा के रावण का अंत कर दिया और इसलिए विजयदशमी मनाई जाती है उस दिन रावण के पुतले को जलाया जाता है और कहा जाता है कि रावण के पुतले साथ सारी बुराइयां भी जला दो और नए नए दिन की शुरुआत करो I और जब राम जी 14 वर्षों का वनवास से लौटे तब इसी खुशी में दीवाली मनाई जाती है I

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