Social Sciences, asked by Anonymous, 9 months ago

राजू की स्वच्छता के प्रति आदर भाव बढ़ा है इससे आप जरूरी क्यों मानते हैं​

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Answered by Anonymous
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स्वच्छता ,स्वास्थ्य और देश का विकास एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। हमारे देश में स्वच्छता गम्भीर चुनौती है क्योंकि संसार में सबसे अधिक लगभग 60 प्रतिशत लोग खुले में शौच करते हैं। अस्वच्छता से अतिसार, बच्चों में कुपोषण और शारीरिक विकास में कमी व अन्य खतरनाक बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं जिनसे मनुष्य के जीवन को बहुत बड़ा खतरा है।

Answered by vbhogal5
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विश्व के विकसित देशों में विकास और आधुनिकता के जो मानक तय किये गए हैं उनमें स्वच्छता का महत्वपूर्ण स्थान है। हम उन विकसित देशों के मॉडल को अपना कर आगे बढ़ने की बात तो करते हैं, लेकिन क्या उन मानकों को भी विकास और आधुनिकता में सम्मिलित करने के लिए तैयार हैं, विचार करने की आवश्यकता है। स्वच्छता का दायरा इतना विस्तृत है कि इसे अमल में लाने के लिए कई स्तरों पर विचार करने की आवश्यकता है। मन, वाणी, कर्म, शरीर, हृदय, चित्त, समाज, परिवार, संस्कृति और व्यवहार से लेकर धर्म और विज्ञान तक में स्वच्छता का विशेष महत्व है। या कहें, बिना स्वच्छता के जीवन, परिवार, समाज, संस्कृति, राष्ट्र, विश्व और चेतना के उच्च आदर्श को प्राप्त करने के लिए स्वच्छता प्रथम सोपान है। केन्द्र में नई सरकार बनने के बाद ऐसी अनेक योजनाएँ मिशन के रूप में कार्यान्वित करने का बीड़ा उठाया गया है जो सीधे-सीधे देश के प्रत्येक व्यक्ति से जुड़ी हुई हैं। ये योजनाएँ व्यक्ति से होती हुईं परिवार, समाज और देश के प्रत्येक क्षेत्र तक जुड़ती हैं। इसमें स्वच्छता मिशन भी एक है। स्वच्छता को लेकर केन्द्र सरकार कितनी गम्भीर है इसे अपने चारों ओर सरकारी, अर्द्धसरकारी और गैर सरकारी कार्यों में देख सकते हैं।

केन्द्र सरकार के स्वच्छ भारत अभियान ने देश के प्रत्येक व्यक्ति को स्वच्छता की ओर उन्मुख किया है और स्वच्छता को जिंदगी का हिस्सा बनाने के लिए भी प्रेरित भी किया है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के नवीन आँकड़ों पर दृष्टिपात करें तो हम पाएंगे देश के छोटे शहरों के वनिस्पत बड़े शहरों में अस्वच्छता या गन्दगी का फैलाव बहुत बड़े पैमाने पर है। हमारे देश में 6 करोड़ टन कचरा हर वर्ष पैदा होता है और यह दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है। इस 6 करोड़ टन कचरे में एक करोड़ टन कचरा केवल दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई, बंगलुरु और चेन्नई जैसे बड़े शहरों में पैदा हो रहा है। दिल्ली में अकेले 9000 मीट्रिक टन कचरा प्रतिदिन पैदा होता है। इसी प्रकार चेन्नई में 16 लाख टन, मुम्बई में 6.600 मिट्रिक टन, कोलकाता में 11 और हैदराबाद में 14 लाख टन कचरा हर साल पैदा होता है। इसी क्रम में पश्चिम बंगाल में 45 लाख टन और उत्तर प्रदेश में 42 लाख टन कचरा या कूड़ा पैदा होता है। हम इससे अनुमान लगा सकते हैं कि सारे देश में विशेष कर बड़े शहरों में कचरे का साम्राज्य स्थापित हो चुका है।

विश्व में जिन 2.5 अरब लोगों के पास साफ-सफाई एवं स्वच्छता की सुविधा उपलब्ध नहीं है उनमें से एक-तिहाई भारत में रहते हैं। इतना ही नहीं दुनिया में जिन अरबों लोगों के पास शौच के लिए शौचालय नहीं है और मजबूरन उन्हें खुले में शौच जाना पड़ता है, उसमें से 60 करोड़ लोग भारत के ही हैं। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत में स्वच्छता के प्रति कितनी लापरवाही और अरुचि है। यूँ तो, भारत में स्वच्छता और साफ-सफाई के प्रति लगभग तीन दशक पहले केन्द्र सरकार ने गाँवों में स्वच्छता को प्राथमिकता देते हुए 1986 में ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम का आरम्भ किया था लेकिन इसके लिए आवंटित राशि उतनी नहीं थी कि यह कार्यक्रम प्रभावी ढंग से आगे बढ़ता। इस कमी को देखते हुए इसे 1999 में सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान (टोटल सेनिटेशन कैंपेन यानी टीएससी) में बदल दिया गया। इस अभियान के तहत घरों, पंचायत घरों, आंगनबाड़ी केन्द्रों एवं स्कूलों में शौचालयों का निर्माण कराने की प्राथमिकता दी गई। सरकारी योजनाओं की जो त्रासदी अमूमन देखने में आती है कुछ वैसा ही हश्र इस योजना का भी हुआ। इस योजना के तहत जो लक्ष्य हासिल करना था, वह नहीं किया जा सका। इसका कारण मुख्य रूप से भ्रष्टाचार, शासन-प्रशासन में इसके प्रति इच्छाशक्ति की कमी, आलस्य और अरुचि थी।

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