राजा राम मोहन राय कौन थे ? उनका नाम प्रसिद्ध क्यो था ?
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Explanation:
राजा राम मोहन राय आधुनिक भारत के पुनर्जागरण के पिता और एक अथक समाज सुधारक थे, जिन्होंने भारत में प्रबोधन और उदार सुधारवादी आधुनिकीकरण के युग का उद्घाटन किया।
जीवन
राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई, 1772 को बंगाल के राधानगर में एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
राजा राम मोहन राय की प्रारंभिक शिक्षा फारसी और अरबी भाषाओं में पटना में हुई, जहाँ उन्होंने कुरान, सूफी रहस्यवादी कवियों के काम तथा प्लेटो और अरस्तू के कार्यों के अरबी अनुवाद का अध्ययन किया था। बनारस में उन्होंने संस्कृत का अध्ययन किया और वेद तथा उपनिषद पढ़े।
सोलह वर्ष की आयु में अपने गाँव लौटकर उन्होंने हिंदुओं की मूर्ति पूजा पर एक तर्कसंगत आलोचना लिखी।
वर्ष 1803 से 1814 तक उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के लिये वुडफोर्ड और डिग्बी के अंतर्गत निजी दीवान के रूप में काम किया।
वर्ष 1814 में उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और अपने जीवन को धार्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक सुधारों के प्रति समर्पित करने के लिये कलकत्ता चले गए।
नवंबर 1830 में वे सती प्रथा संबंधी अधिनियम पर प्रतिबंध लगाने से उत्पन्न संभावित अशांति का प्रतिकार करने के उद्देश्य से इंग्लैंड चले गए।
राम मोहन राय दिल्ली के मुगल सम्राट अकबर II की पेंशन से संबंधित शिकायतों हेतु इंग्लैंड गए तभी अकबर II द्वारा उन्हें ‘राजा’ की उपाधि दी गई।
अपने संबोधन में 'टैगोर ने राम मोहन राय को' भारत में आधुनिक युग के उद्घाटनकर्त्ता के रूप में भारतीय इतिहास का एक चमकदार सितारा कहा।
राजा राममोहन राय (बांग्ला: রাজা রামমোহন রায়) (22 मई 1772 - 27 सितंबर 1833) को भारतीय पुनर्जागरण का अग्रदूत और आधुनिक भारत का जनक कहा जाता है। ... वे ब्रह्म समाज के संस्थापक, भारतीय भाषायी प्रेस के प्रवर्तक, जनजागरण और सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणेता तथा बंगाल में नव-जागरण युग के पितामह थे।