राजेंद्र बाबू के पिता गरीबों के लिए क्या करते थे?
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राजेन्द्र प्रसाद (3 दिसम्बर 1884 – 28 फरवरी 1963) भारत के प्रथम राष्ट्रपति Rajendra Prasad थे।[1] वे भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से थे जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में भी अपना योगदान दिया था जिसकी परि ]] को भारत के एक गणतंत्र के रूप में हुई थी। राष्ट्रपति होने के अतिरिक्त उन्होंने भारत के पहले मंत्रीमंडल 1946 एवं 1947 मेे कृषी और खाद्य मंत्री भी रह चुके हे,लोकप्रिय होने के कारण उन्हें राजेन्द्र बाबू या देशरत्न कहकर पुकारा जाता था।
राजेन्द्र प्रसाद
Rajendra Prasad (Indian President), signed image for Walter Nash (NZ Prime Minister), 1958 (16017609534).jpg
प्रथम भारत के राष्ट्रपति
पद बहाल
26 जनवरी 1950 – 14 मई 1962
प्रधानमंत्री
पण्डित जवाहर लाल नेहरू
उप राष्ट्रपति
सर्वपल्ली राधाकृष्णन
पूर्वा धिकारी
स्थिति की स्थापना
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी भारत के गवर्नर जनरल के रूप में
उत्तरा धिकारी
सर्वपल्ली राधाकृष्णन
मृत्यु
28 फ़रवरी 1963
पटना, बिहार,भारत
राष्ट्रीयता
भारतीय
राजनीतिक दल
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
जीवन संगी
राजवंशी देवी (मृत्यु 1961)
शैक्षिक सम्बद्धता
कलकत्ता विश्वविद्यालय
धर्म
हिन्दू
हस्ताक्षर
राजेन्द्र प्रसाद के पूर्वज मूलरूप से कुआँगाँव, अमोढ़ा (उत्तर प्रदेश) के निवासी थे। यह एक कायस्थ परिवार था। कुछ कायस्थ परिवार इस स्थान को छोड़ कर बलिया जा बसे थे। कुछ परिवारों को बलिया भी रास नहीं आया इसलिये वे वहाँ से बिहार के जिला सारण (अब सीवान) के एक गाँव जीरादेई में जा बसे। इन परिवारों में कुछ शिक्षित लोग भी थे। इन्हीं परिवारों में राजेन्द्र प्रसाद के पूर्वजों का परिवार भी था। जीरादेई के पास ही एक छोटी सी रियासत थी - हथुआ। चूँकि राजेन्द्र बाबू के दादा पढ़े-लिखे थे, अतः उन्हें हथुआ रियासत की दीवानी मिल गई। पच्चीस-तीस सालों तक वे उस रियासत के दीवान रहे। उन्होंने स्वयं भी कुछ जमीन खरीद ली थी। राजेन्द्र बाबू के पिता महादेव सहाय इस जमींदारी की देखभाल करते थे। राजेन्द्र बाबू के चाचा जगदेव सहाय भी घर पर ही रहकर जमींदारी का काम देखते थे। अपने पाँच भाई-बहनों में वे सबसे छोटे थे इसलिए पूरे परिवार में सबके प्यारे थे।
उनके चाचा के चूँकि कोई संतान नहीं थी इसलिए वे राजेन्द्र प्रसाद को अपने पुत्र की भाँति ही समझते थे। दादा, पिता और चाचा के लाड़-प्यार में ही राजेन्द्र बाबू का पालन-पोषण हुआ। दादी और माँ का भी उन पर पूर्ण प्रेम बरसता था।
बचपन में राजेन्द्र बाबू जल्दी सो जाते थे और सुबह जल्दी उठ जाते थे। उठते ही माँ को भी जगा दिया करते और फिर उन्हें सोने ही नहीं देते थे। अतएव माँ भी उन्हें प्रभाती के साथ-साथ रामायण महाभारत की कहानियाँ और भजन कीर्तन आदि रोजाना सुनाती थीं।
Answer:
I hope Mara answer aap ko kaam aye GA.....
please Muja follow kro.......