राज्यों की स्वायत्तता के प्रति आदर भाव बढ़ा है इसे आप जरूरी क्यों मानते हैं
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केंद्र तथा राज्यों के बीच वित्तीय व राजकोषीय संबंधों की व्याख्या संविधान के भाग-12 के अध्याय (1) में की गई है। संघ तथा राज्यों के मध्य वित्तीय साधनों का विभाजन किया गया है। भारतीय संविधान में यह विभाजन 1935 के अधिनियम में किये गए विभाजन पर आधारित है। वर्तमान विभाजन के अनुसार कुछ ‘कर’ केवल राज्य सरकारों को सौंपे गए हैं। राज्य सरकारें अपने द्वारा लगाए गए करों को स्वयं एकत्रित करती हैं और स्वयं ही अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये उस धन को व्यय करती हैं। अनुच्छेद 266 के अंतर्गत भारत और राज्यों की संचित निधियों और लोक लेखाओं की स्थापना की गई है। संविधान के अनुच्छेद 273, 275 एवं 282 के अंतर्गत राज्यों को तीन प्रकार के सहायता अनुदान प्रदान किये जाते हैं। अनुच्छेद 280 के अनुसार संघ और राज्यों के बीच करों के शुद्ध आगमों के वितरण, राज्यों के बीच ऐसे आगमों के आवंटन भारत की संचित निधि में से राज्यों के राजस्वों में सहायता अनुदान को शासित करने वाले सिद्धांतों, राज्यों में पंचायतों नगरपालिकाओं के संसाधनों की पूर्ति के लिये किसी राज्य की संचित निधि के आवश्यक उपायों आदि के बारे में वित्त आयोग सर्वप्रथम राज्य सरकारों को पत्र लिखकर उनसे आगामी पाँच वर्षों में उनके सामान्य राजस्व व्यय और राजस्व से प्राप्त आय के आकलन देने को कहता है। आकलनों के प्राप्त होने पर इनकी विश्वसनीयता की जाँच करने और आवश्यक स्पष्टीकरण के लिये राज्यों के संबंधित अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श करने इत्यादि हेतु ही वित्त आयोगों का गठन किया जाता है।