राज्य की उत्पत्ति के सामाजिक समझौत सिद्धांत
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राज्य की उत्पत्ति संबंधित सामाजिक समझौते के सिद्धांत का प्रतिपादन सत्रहवीं एवं अठराहवीं शताब्दी में हुआ। इस सिद्धांत पर विश्वास करने वाले विचारकों का यह मानना है कि राज्य एक मनुष्यकृत संस्था है और समझौते का परिणाम है। इस विद्वानों का कहना है कि राज्य की उत्पत्ति के पूर्व की अवस्था को अराजक अवस्था या प्राकृतिक अवस्था कहा जायेगा। इस अवस्था में मनुष्य को कुछ ऐसी दिक्कतें हुई। जिनके कारण उसे राज्य का निर्माण करना पड़ा। विभिन्न कठिनाइयों के कारण ही लोगों ने आपस में समझौता कर राज्य की स्थापना की और अपने प्राकृतिक-अधिकारों का तयाग कर राज्य द्वारा रक्षित नागरिक अधिकारों को प्राप्त किया। इसी को राज्य की उत्पत्ति का सामाजिक समझौता -सिद्धान्त कहते हैं।
लॉक के अनुसार, प्राकृतिक अवस्था में मनुष्य का जीवन शांत और आदर्श था। मनुष्य का प्रत्येक कार्य उचित, अनुचित, अधर्म, पुण्य, पाप की स्वाभाविक भावना का आधृत था। मनुष्य के कुछ प्राकृतिक अधिकार भी थे। परन्तु सबसे बड़ी दिक्कत यह थी कि प्राकृतिक नियमों की व्यवस्था करने वाला कोई नहीं था कि उचित क्या है और अनुचित क्या है। किसी भी बात में मतभेद होने पर सर्वमान्य निर्णय करनेवाला कोई नहीं था। अत: लोगों को राज्य संस्था की स्थापना की आवश्यकता महसूस हुई । इस प्रकार, प्राकृतिक अवस्थाओं की कठिनाइयों को दूर करने के उद्देश्य से लोगों ने एक समझौता किया, जो सभी लोगों का सभी के साथ हुआ।
हॉब्स के अनुसार, मनुष्य का जीवन एकांकी, निस्सार असहाय पाशविक और क्षणिक था। इस अवस्था में मनुष्य के कुछ प्राकृतिक अधिकार और नियम अवश्य थे, परन्तु शक्ति सम्पन्न संस्था के अभाव में नियमों का पालन तथा अधिकारों का उपयोग मनुष्य स्वेच्छा से किया करता था। इसी कारण लोगों ने राज्य-संस्था की कमी महसूस की।
लोगों ने राज्य की स्थापना के उद्देश्य से आपस में समझौता किया, जिसमें कहा गया, मैं इस व्यक्ति के समूहों को इस शर्त पर अधिकार देता है और अपने आप को शासित करने के अधिकार को छोड़ता हूँ ताकि आप भी उसे अपना अधिकार दे दें और इसके सब कार्यो को उसी रूप में अधिकृत करें। इस प्रकार जब सभी लोगों ने समझौता कर लिया तब राज्य संस्था का जन्म हुआ।